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-जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? - है। मूल वडाली निवासी पोपटलाल कालिदास हाल ईडर में रहते हैं। जिनको चार वर्ष पूर्व कैंसर हो गया था। टाटा हॉस्पीटल में बताने पर जानने को मिला कि अब वे ज्यादा दिन नहीं जियेंगे। तब उनकी पत्नी ने सूचन किया कि "आपको जाना ही है, खाना नहीं खाया जाता तो सिद्धचक्र एवं नवकार के ध्यान में बैठ जाओ और आज से ही निर्णय कर लो कि यदि बच गया, तो प्रतिवर्ष आसोज एवं चैत्र महिने की आयंबिल की ओली पारणे सहित ईडर में करवाऊँगा और एक पूजन पढ़ाऊँगा।" वह एक महिने में अच्छे हो गये। डॉक्टर को बताया तो वे भी आश्चर्य में पड़ गये। आज भी वे स्वयं आयंबिल तो नहीं कर सकते, किंतु ऊपर की आराधनाएं चालु ही हैं। "सवा लाख नंवकार से अच्छा हो गया"
बड़ौदा में हीरालाल का लड़का, जिसकी उम्र दो वर्ष की ही थी। किसी बीमारी के कारण उसकी गंभीर परिस्थिति हो गई थी। डॉक्टरों ने हाथ झिड़क दिये। इसलिए वह भाई उस बालक को गायत्री मंत्र वाले के पास ले गये। उस साधक की शक्ति से कइयों की बीमारी समाप्त हो गई थी। उसने बालक को बैठाकर प्रयोग चालु किया। किंतु बालक के
अंग में कोई शक्ति नहीं आ रही थी। साधक के कान में आवाज आई, |"बालक जैन है। उसे एक लाख नवकार का जाप और पालिताणा की यात्रा करवाओ।" एक महिने में अच्छा हो जायेगा। बालक वास्तव में अच्छा हो गया और आज भी जीवित है। "डाकू डर गये।"
बैंग्लौर (कर्नाटक) से एक भाई सोने के बिस्कुट व्यापार के लिए लेकर आ रहे थे। थैले पर शंका होने से दो गुंडे पीछे पड़ गये। उस भाई ने जो टिकट ली थी, उसी के पास वाली सीट पर गुंडों ने अड्डा जमाया। वह बहुत दांव खेलने लगे। थैले वाले भाई बहुत घबराये और नवकार मंत्र गिनने लगे। उन लोगों का बस नहीं चला। वे भाई मुंबई दादर उतरे। वहां से झवेरी बाजार जाने के लिए टेक्सी की। उन गुंडों ने भी उसी टैक्सी
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