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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
सौजन्य युक्त था। जिसके कारण ई. सन् 1987 में झरिया निवासी श्री | शामजीभाई शेठ के सांनिध्य में सम्मेतशिखर तीर्थ की यात्रा बस द्वारा 50 यात्रियों के साथ 28 दिनों में उल्लास सह सम्पन्न हुई।
बस उसी यात्रा के बाद अन्तिम तीर्थयात्रा, 28 दिन के यात्रा प्रवास के साथ कुल गुजरात और राजस्थान के प्रसिद्ध - अप्रसिद्ध 108 तीर्थों की स्पर्शना करने हेतु आयोजित किया, जिसके पश्चात् चारित्र जीवन अंगीकार करने की भावना थी। वैसे भी बचपन की अनजान उम्र से ही तीर्थयात्रा का प्रेम ऐसा साहजिक था कि भावना की भव्यता के साथ तब तक हिन्दुस्तान के 250 से अधिक तीर्थों की यात्रा दो से अधिक बार और शिखरजी की यात्रा 35 बार हो चुकी थी । अनमोल अनुभवों के साथ बैंग्लोर से दिनांक 26.1.1988 मंगलवार के मंगल महूर्त में हम सभी ने अहमदाबाद जाने के लिए ट्रेन से प्रस्थान किया। कुल 50 यात्रार्थियों के साथ हठीसिंह की वाड़ी से शुभारंभ किया। जिससे पूर्व ही 28 दिन की सफल यात्रा हेतु हम सभी ने मिलकर एक दिन में 28 से अधिक आयंबिल किये थे और गुरु भगवन्तों के मांगलिक प्रवचनोपदेश से प्रस्थान किया।
उत्साह उमंग और उन्नति को लक्ष्य में रखकर सभी ने बस द्वारा यात्रा करना प्रारंभ किया। हम श्री शंखेश्वरजी, तारंगाजी, आबुजी, राणकपुर, आदि प्रमुख तीर्थों की सुन्दर स्पर्शना करते-करते ठीक 14 वें दिन दिनांक 6.2.88 को सुबह जैसलमेरजी तीर्थ से आगे बढ़ते हुए शाम को करीब चार बजे के पूर्व ही बाड़मेर पहुंचे, जहां पर चौविहार हेतु अल्प मुकाम किया और शाम को ही नाकोड़ाजी जाने हेतु प्रस्थान किया।
नाकोड़ाजी रात्रि को 9-30 से पहले पहुंचने का अंदाज था किन्तु भवितव्यता कुछ और थी । हररोज हमारे साथ ही रात्रिभोजन का त्याग कर लेने वाला बस ड्राईवर उस दिन ही प्रमादी बना, और न जाने बाड़मेर - नाकोड़ा के बीच रास्ते में संघपति की 5-6 यात्रा बसों के ड्राईवरों के साथ भोजन हेतु कुछ देर रुका। हमें भी उसकी कार्यदक्षता को लक्ष्य में रखकर उसकी इच्छा में सहमत होना पड़ा, किन्तु जब कोई घटना नियति के आधीन हो, कौन क्या कर सकता है ?
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