________________
- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? भक्ति गीतों की रमझट के बाद हम सब पूरे दिन की आराधना से थके हुए थे, जिससे मैंने बस की अन्तिम 6 सीटों के स्थान को छोड़कर बांये ओर की एक सीट पर स्थान लिया, और कुछ निद्रावस्था का अनुभव था। साथ-साथ नवकार मंत्र का स्मरण भी चालु था। लम्बे सफर के बाद नाकोड़ाजी तीर्थ सिर्फ 17 कि.मी. दूर था कि अचानक स्थानान्तर के करीब 15 मिनट के समय बीतने के साथ ही बस सामने से आ रही ट्रक के साथ टक्कर खा बैठी। कोई विस्फोट सी आवाज अनुभव करते ही हम सब सजग हो गये, किन्तु बस की रफ्तार और गति-दिशा चालक के हाथ से बाहर हो गयी थी। वातावरण की गंभीरता और भयानकता ऐसी थी कि सब यात्री अवाक् थे, किन्तु मेरे मुख में नित्य स्मरण से आत्मसात् जैसा नमस्कार महामंत्र स्पष्ट निकल गया। बस को ट्रक की टक्कर से लगे धक्के के कारण, मैं भी सीट पर से गिर गया था, किन्तु मृत्यु का सहज भय, नवकार उच्चारण में रूपान्तरित हो गया। बस मुख्य मार्ग से उतर कर रेत की पगडंडी पर जा रही थी। चालक स्वयं का भी सन्तुलन नहीं रहा था, जिससे सारी की सारी बस पलटी खाकर मृत्यु का शस्त्र बन जाने में कुछ ही देर थी कि...नमस्कार का मेरा उच्चारण चमत्कार का कारण बन गया। सिर्फ दो नवकार का स्मरण पूरा हुआ न हुआ, बस चालक ने विचित्र चाल और गति-दिशा आदि पर नियंत्रण लेकर बस को ब्रेक लगाकर रास्ते के नीचे एक ओर रेतवाली जगह पर रोक दी।
बस चालक स्वयं भयभीत होकर खिड़की से उतरकर अकस्मात् स्थल पर भाग गया जो कि करीब 500 फीट दूर था। इस ओर यात्रा प्रवास के मुख्य संचालक की जिम्मेदारी के कारण मैं भी अपनी खिड़की से कूदा और देखता हूँ कि दुर्घटना बहुत ही भयप्रद घटी थी। बस बीच के भाग की ओर से कट गयी थी। जिससे, सर्वथा पीछली सीटों के यात्री में से कुल 12 यात्री (पुरुष-स्त्री) रास्ते पर गिर गये थे। भयानकता तो यह थी कि अकस्मात् में एक छोटी बच्ची के साथ कुल आठ यात्रियों की मौत हो चुकी थी। और एक युवान स्त्री यात्री ने निकट के बालोतरा अस्पताल में पहुंचते ही मूर्छितावस्था में प्राण त्याग दिया। कुल आठ स्त्री
194