________________
- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बहुत अच्छी स्थिति लगी।
डॉ. निकलसन सोच में पड़ गये-"शारीरिक स्थिति गंभीर नहीं होने के बावजूद यह बोलते क्यों नहीं?" बेहोश अवस्था जेसा भी लगता नहीं! डॉ. निकलसन ने डॉ. झवेरी...झवेरी! 'इस तरह दो-तीन बार जोर से पुकारा तब धीरे-धीरे मैं स्वस्थ-जाग्रत हुआ। डॉ. निकलसन ने चकित होकर पूछा, "डॉ. झवेरी कैसे हो? बोल क्यों नहीं रहे थे? बेहोश थे क्या?"मैंने कहा कि "मेरे प्यारे! मैं काफी स्वस्थ हूँ! मैं होश में हूँ।"
"मेरा दःख दर्द गायब हो गया है। मेरा रोग रुक गया है। उसकी तीव्रता कम हो गयी है। मेरे प्रभु ने मेरा हाथ पकड़ा है। मैं खूब शांति में हूँ। अब मुझे मॉर्फीया की जरूरत नहीं है।"
में इस प्रकार कहकर अरिहंत-अरिहंत करते हुए पुनः श्री नवकार के ध्यान में खो गया। मेरी आंखें एकाग्रता से शून्य आकाश की ओर स्थिर हो गयीं, मानो वे मेरे तरणतारणहार प्रभु को देख रही थीं...
मेरी स्थिति की विचित्रता देखकर, विचार में पड़े डॉ. निकलसन उस समय कोई भी ट्रिटमेंट दिए बिना गंभीरता से सोचने के लिए अपने केबिन में चले गये।
परन्तु पहले की तरह मेरी स्थिति शांत और शून्यवत् देखकर नर्सी एवं ड्यूटी पर के डॉक्टरों ने "मै बेहोश हो रहा हूँ" ऐसा समझकर बड़े डॉक्टर को समाचार दिये।
सर्जिकल डिपार्टमेंट के सबसे बडे डॉ. रीड, डॉ. निकलसन के पास से प्राथमिक जानकारी लेकर डॉ. निकलसन के साथ मेरे पास बारह बजे आये।
में अरिहंत प्रभु के ध्यान में एवं श्री नवकार मंत्र के शब्दजाप में लीन था। मेरा दुःख दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा था। मुझे अब दवा की या नींद की जरूरत नहीं थी। ट्युब द्वारा कठिनाई से उतरने वाला पेशाब अब आराम से होने लगा था।
42