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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? लूट में एक दर्जन घड़ियाँ, पोना दर्जन अंगूठियाँ, आधा दर्जन सोने की चूड़ियाँ, तीन-चार नेकलेस और 4100 रूपये नकद आये थे।
यह लूट का सामान देखते ही हमारे स्वजन हमारी आंखों के सामने आ गये। सभी सामान उनका ही लूट कर इकट्ठा किया गया था। अंगूठियाँ एवं घड़ियाँ तो वही की वही थीं, किन्तु आज वे खून के आंसु खींच लाती थीं।
डाकू मस्ती में थे। जिनकी अंगुली में जो अंगूठी फिट हुई, उसे उसने पहन लिया। सभी के हाथ में घड़ियाँ बंधी थीं। किसी ने तो दो-दो घड़ियाँ पहनी थीं। किसी के हिस्से में गहने आये।
हम अपनी आंखों के आगे यह नाटक देख रहे थे, किन्तु तनी हुई बंदूक की नोंक के आगे हम लाचार थे। बंटवारा होने के बाद अचानक हमारी तलाशी ली गई। किन्तु लूटे हुओं के पास क्या मिलेगा?
हमारे में से राजेन्द्र की जेब में से एक भीगा हुआ सिगरेट का पैकेट निकला। डाकू बीड़ी पीने लगे और अपने-अपने हिसाब से बातें शुरु की। एक डाकू को मजाक करने का मन हुआ। उसने पूछा 'ए, तेरा नाम क्या? तेरी मुम्बई की सफेद बीड़ी तो भीग गई है। ले, यह देशी बीड़ी पी।"
राजेन्द्र में अब कुछ हिम्मत आयी। अपना नाम बताकर वह बोला, "सिगरेट तो अभी सूख जाएगी किन्तु तुमने जो अंगूठी पहनी है, वह मेरी शादी की है। यह अंगूठी निकलने से तो अपशकुन गिना जाता है!" डाकृ ने अंगूठी निकाल कर राजेन्द्र को दे दी। चंबल की घाटी में मानवता के दर्शन पहली बार हुए। हम मानने को तैयार नहीं थे, किन्तु इस घटना ने हमारे विचार बदले। अब हम में बातचीत करने की हिम्मत आई। सुरेश ने कहा ''हमको प्यास लगी है।' डाकू ने वॉटरबेग देते हुए कहा, 'पानी थोड़ा है, इसलिए घी की तरह पीना। ____ हमने गले को भिगोकर संतोष कर लिया। जीभ पर कई बातें आकर खड़ी थीं। किन्तु बंदूक की नोंक का भय, हम पर अभी भी सवार था। .
थोड़ी देर बाद भूख सताने लगी। उतने में तो डाकुओं ने प्रवास