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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - दबाव आता है कि, मुझे वह जाप छोड़ देना ही पड़ता है।'
मैं एक दिन संयोग से उनके घर गोचरी के निमित्त गया और उस भाई और उनकी धर्मपत्नी के कहने से मांगलिक सुनाने की शुरुआत की, कि अचानक भयंकर गर्जना के साथ वह भाई एकदम उछल पड़े और गुस्से के आवेश में डरावनी आकृति करके अरबी भाषा में धमकियां देने लगे। ऐसा हमेशा होने से उनकी पत्नी तथा दो बालक अरबी भाषा के थोड़े शब्दों के भावार्थ, हावभाव वगैरह से समझ सकते हैं। इससे उन्होंने कहा कि, "यह आपको कहना चाहता है कि अपने धर्म के मन्त्र बोलना बंद करो, नहीं तो तुम्हें मार डालूंगा।"
यह सुनकर मैंने उस पठान के प्रति मैत्री-भाव का चिन्तन कर मन में ही नवकार महामन्त्र का स्मरण चालु रखा और थोड़ी देर में वह पठान चला गया और उसकी जगह पर जिन लोगों ने इस मैली विद्या का प्रयोग किया था, वे दो महिलाएं उस भाई के शरीर में प्रवेश कर रोती-रोती करुण स्वर में कहने लगी कि, "महाराज साहब! हमें बचाओ। हम बहुत दुःखी हैं! हमारा उद्धार करो।"
मैंने उनसे कहा, "तुम किस लिये दूसरे जीवों को परेशान करने हेतु ऐसे प्रयोग करती हो? ऐसे प्रयोगों को बन्द करो और दूसरों को सुख दोगे तो सुखी बनोगे।"
उन्होंने कहा, "हम सब समझते हैं, परन्तु क्या करें, लाचार हैं, जिस प्रकार कोई शराबी शराब के नुकसान का ख्याल होते हुए भी उसे छोड़ नहीं सकता, उसी प्रकार हम भी यह व्यसन छोड़ नहीं सकते। "
उनको अपना परिचय देने को कहा परन्तु उन्होंने कहा, "हमारे जैसे पापियों का परिचय प्राप्त करके क्या करोगे? यह बात रहने दो।"
फिर उनको प्रासंगिक थोड़ी हितशिक्षा दी और थोड़ी देर में वे महिलाएं भी चली गयीं, तब स्वस्थ बने हुए उस भाई के समक्ष बड़ी शान्ति सूत्र आदि मांगलिक सुनाया और उन्हें उपाश्रय आने को कहा। वह भाई थोड़े समय के बाद अपनी धर्मपत्नी के साथ उपाश्रय में
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