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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? आये। हमने आचार्य भगवन्त को पूरी हकीकत से वाकिफ करा दिया था। आचार्यश्री द्वारा उनके मस्तक पर वासक्षेप डालते ही फिर वह अरबस्तानी पठान जाग्रत हुआ और गुस्से में अपनी भाषा में मुट्ठी उठाकर धमकियां देने लगा।
हमने पूज्य श्री से कहा "आप रहने दो, हमको नवकार का प्रयोग आजमाने की अनुमति दो। "पूज्य श्री ने कहा 'ठीक है'। थोड़ी देर बाद वह भाई जब मूल स्वरूप में आ गये तब हम उनको उपाश्रय के एक कमरे में ले गये। हमारे में से एक मुनिवर उनके सामने बैठे। बाकी के उनके पास खड़े रहे। वज्रपंजर स्तोत्र द्वारा आत्म-रक्षा करके मुनिवर द्वारा नवकार सुनाते ही तुरन्त वह पठान चिड़ गया और पहले से भी ज्यादा उग्र आवाज से धमकियां देने लगा। इसलिए तुरन्त हम सब मुनियों ने तालबद्ध रूप से बड़ी आवाज से नवकार महामंत्र का रटन शुरु किया। पठान के गुस्से का पार न था। वह तरह-तरह की भयंकर मुद्राओं से मुनिवर को डराने लगा। वह अत्यन्त मजबूत मुद्री उठाकर एकदग जोर से मुनिवर के मुंह तक लाता। मानो कि अभी ही वह मुनिवर की बत्तीसी तोड़ डालेगा या उनको मार डालेगा। कमजोर हदय के व्यक्ति का कदाचित् हदय ही बैठ जाये ऐसी भयंकर गर्जनाएं, फुकारे, चीखें तथा चेष्टाएं वह करने लगा, फिर भी महामंत्र के पृष्ठ-बल से जरा भी घबराये बिना मुनिवर भी उच्च स्वर से तालबद्ध नवकार का रटन करते ही रहे।
पठान ने लगभग 20 मिनट तक खूब तूफान किया, परन्तु वह नवकार के अदृश्य, अभेद्य, कवच के कारण मुनिवर को स्पर्श भी नहीं कर सका। इससे हिम्मत में आकर मुनिवर ने उसके बाल पकड़ लिये। तब उसका मुंह एकदम दयापात्र जैसा हो गया। अन्त में -"अब मेरा नमाज पढ़ने का समय हो जाने से मैं जाता हूँ," इस प्रकार के शब्द अरबस्तानी भाषा में उच्चारण कर वह चलता बना। उसके बाद एक कश्मीरी प्रेत जो पहले इस भाई को परेशान करता था, परन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप होते ही अब उसे यथासम्भव सहायता करता था, वह उस भाई के शरीर में आया। उसकी भाषा में कोई-कोई हिन्दी के शब्द आते थे,
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