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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - पंखुड़ियों के ऊपर गोल-गोल जाप शुरू किया। उससे चक्कर आने लगा। उससे ध्यान का स्थान बदलकर हदय के ऊपर चार पंखुड़ियों के ऊपर जाप चालु किया। बीच की कणिका में 'नमो अरिहंताणं,' दाहिनी और की पंखुड़ी में 'नमो सिद्धाणं, ऊपर की पंखुड़ी में 'नमो आयरियाणं, बांयी
और की पंखुड़ी पर 'नमो उक्झायाणं' और नीचे की पंखुड़ी पर 'नमो लोए सव्वसाहूणं इस प्रकार बीच की कर्णिका एवं चारों ओर की चार पंखुड़ियों पर ध्यान केन्द्रित किया। प्रारंभ में माला से जाप करता था। किन्तु उसका परिणाम यह आया कि कितनी माला का जाप किया, इसकी गिनती होने लगी। गिनती वाली बात योग्य नहीं लगने से माला छोड़कर | ऐसे ही जाप चालु किया। पूरे दिन के दौरान लगभग 12-15 हजार जाप होता होगा।
चौथे दिन दोपहर को दो बजे के करीब जाप चालु था। एकाएक नेत्रों के सामने दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ। तलगृह में तो घोर अंधकार था तो इतना दिव्य प्रकाश कहां से आया। शायद स्वप्न तो नहीं है? इसलिए शरीर को देखा, में बराबर बैठा था। जाग्रत अवस्था में था। जाप चालु रखा। दिव्य प्रकाश में बड़े सरोवर, पहाड़ दिखाई देने लगे। तब लगा कि यह कल्पना है। जाप या ध्यान में कल्पना को कोई स्थान ही नहीं होता है। किन्तु प्रकाश का प्रवाह बढ़ता ही गया। उसके बाद हजारों साधु-साधि वयां अपने ध्यान में मग्न हों, ऐसा दिखाई देने लगा। तब लगा कि, क्या भगवान का समवसरण तो प्रकट नहीं हुआ? किन्तु भगवान के दर्शन नहीं हुए। साधु एवं साध्वियों के दर्शन लम्बे समय तक चले। लगभग 35-40 मिनट तक यह दर्शन चले। उसके बाद यह सब गायब हो गया। मन शांत था। जाप चालु था। दो बार प्रयत्न किया, किन्तु कुछ नहीं हुआ।
उसके बाद शांत चित्त से चार दिन जाप में बीते। अन्तिम दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण किया और नौवें दिन विराम कर, पूज्य श्री के चरणों में आकर पूरी बात सुनायी। आचार्य श्री ने पूरी बात सुनी और इतना ही कहा कि, "जो हुआ वो अच्छा हुआ।" तब मेरे मन में अहंकार का उद्भव हुआ। मैंने पूछा, "क्या जो दर्शन हुआ, वह आत्मदर्शन था?
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