________________
-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - इंदिय-विसय-कसाये, परिसहे वेयणा य उवसग्गे। एए अरिणो हता, अरिहंता तेण वुच्चति। 919।।
अर्थ : इन्द्रियों, विषयों, कषायों, परिषहों, वेदनाएं, उपसर्ग यह सभी अतंरंग भावशत्रु हैं। इन शत्रुओं को नष्ट करने वाले अरिहंत कहलाते हैं।
2. प्रतिहार्य अर्थात् प्रतिहारी-द्वारपाल की तरह हमेशा प्रभुजी के पास रहने वाले।
3. श्री तीर्थकर की वाणी के 35 गुण -
1. सभी स्थान पर समझ सकें वैसी 2. एक योजन तक सुनाई देती 3. प्रौढ 4. मेघ जैसी गंभीर 5. स्पष्ट शब्दों वाली 6. संतोषजनक 7. प्रत्येक आदमी को यही लगे कि प्रभुजी मुझे ही कह रहे हैं-वैसी 8. पुष्ट अर्थवाली 9. परस्पर विरोधरहित 10. महापुरुष को शोभे वैसी 11. संदेह रहित 12. दूषण रहित अर्थवाली 13. कठिन विषय को भी सरल करे वैसी 14. जहां जैसा शोभा दे वहां वैसा बोलने वाली 15. षद्रव्य एवं नौ तत्त्व को पुष्ट करने वाली 16. प्रयोजन सहित 17. पद रचना सहित 18. छः द्रव्य एवं नौ तत्त्व की पटुता सहित 19. मधुर 20. अमर्मबेधी 21. धर्म, अर्थ प्रतिबद्ध 22. दीप समान प्रकाश-अर्थ सहित 23. परनिन्दा एवं स्वप्रशंसा रहित 24. कर्ता, कर्म,क्रिया काल, विभक्ति सहित 25. आश्चर्यकारी 26. वक्ता सर्वगुण सम्पन्न है, ऐसा लगने वाली 27. धैर्य वाली 28. विलंब रहित 29. भ्रांति रहित 30. सभी अपनी-अपनी भाषा में समझ सकें वैसी 31. शिष्ट बुद्धि उत्पन्न कराने वाली 32. पद के अर्थ को अनेक प्रकार से विशेष आरोपण कर बोलने वाली 33. साहसिकता युक्त 34. पुनरुक्ति दोष रहित 35. सुनने वाले को खेद नहीं हो वैसी।
(4) श्री अरिहंत भगवान के 34 अतिशय -
अन्य देवों की अपेक्षा से अरिहंत परमात्मा की विशेषताएं बताने हेतु शास्त्रकारों ने 34 अतिशयों का वर्णन किया है। जो निम्नोक्त प्रकारों से हैं।
395