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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
अचिंतचिंतामणि नवकार
(यहाँ प्रस्तुत अद्भुत घटना तथा उसका मननीय विश्लेषण 'अचिंतचिंतामणि नवकार में से साभार उद्धत किया गया है। गुलाबचन्द भाई का लगभग 20 वर्ष पूर्व देह विलय हुआ है। संपादक)
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"मुझे कैन्सर का रोग था । दिन-प्रतिदिन व्याधि उग्र बनती जा रही थी। सुधार होने की आशा नहीं थी। पिछले चार-पांच दिन से पानी पीना भी मुश्किल हो गया था। प्यास और वेदना असह्य बन गयी थी । | पेनिसिलिन के इन्जेक्शन दिये जा रहे थे। मुझे प्रत्येक चार घंटों के बाद इंजेक्शन दिया जा रहा था ।
'अब
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उस समय एकाएक मेरे दिमाग में एक विचार कौंधने लगा। अंतिम समय है।' वर्षों पूर्व व्याख्यान में सुने हुए वचन याद आने लगे। 'पूरी जिन्दगी में धर्म न किया हो, किन्तु अन्तिम समय में सभी जीवों से क्षमायाचना कर, वैर विरोध भूलकर सभी जीवों के साथ मैत्रीभावपूर्वक नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया जाए तो आत्मा की सद्गति होती है। इसी कारण मैंने नमस्कार महामंत्र का रटन शुरू कर दिया। मैंने डॉक्टर को भी कह दिया, 'अब मुझे कुछ नहीं चाहिए, पानी की भी मुझे जरूरत नहीं है।'
मैंने सभी के साथ क्षमायाचना की और जगत के सभी जीवों के साथ मैत्रीभाव की उद्घोषणा की। फिर नवकार का स्मरण खूब भावपूर्वक किया । मेरी शैय्या के आसपास करूण दृश्य दिखाई दे रहा था। घर के लोग रोते हुए मुझे नवकारमंत्र सुना रहे थे।
उस अविस्मरणीय रात को 15 वर्ष हो गये हैं। जीवन दिया। मेरा प्राणघातक कैंसर नवकार के आगे टिक
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नवकार ने मुझे नहीं सका।"
बाहर गाँव से आये एक भाई नवकार के प्रभाव से खुद को मिला अनुभव बता रहे थे। उनकी आवाज में खुद के अनुभव की रणकार थी।