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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? विसर्जन करना।
आचार्य भगवंत इन पांच समिति का पालन करते हैं। तीन गुप्ति : गुप्ति अर्थात् असत्प्रवृत्ति को रोकना। मनोगुप्ति : मन की अशुभ प्रवत्ति को रोकना। वचनगुप्ति : वाणी की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना। कायगुप्ति : काया की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना। आचार्य भगवंत इन तीन गुप्ति का पालन करते हैं।
पांच समिति एवं तीन गुप्ति मिलकर अष्ट प्रवचन माता कही जाती |हैं। (इसके अलावा दूसरे प्रकार से भी छत्तीस गुण गिने जाते हैं)
उपाध्याय महाराज और उनके पच्चीस गुण : जिनके समीप रहने से श्रुतज्ञान का लाभ हो उसे "उपाध्याय" कहते हैं। वह श्रुत श्री जिनेश्वर देवों द्वारा कहा हुआ है। द्वादशांग रूप इग्यारह अंग और 12 उपांग का ज्ञान खुद को हो और वह दूसरों को पढ़ाये। इसके उपरांत चरण सित्तरी (उत्तमचारित्र) और करण सित्तरी (उत्तम क्रिया) इन दोनों को मिलाकर "उपाध्याय" के पच्चीस गुण इस प्रकार हैं - इग्यारह अंग सूत्र
बारह उपांग सूत्र 1 आचारांग
1 उववाइअ 2 सूयगडांग
2 रायपसेणी 3 ठाणांग
3. जीवाजीवाभिगम समवायांग
न्नवणा 5 भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति) 5 जंबूदीव पन्नत्ति 6 ज्ञाता धर्मकथांग
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सूर पन्नत्ति 7 उणसक दशांग
7 चंद पन्नत्ति अंतगड़ दशांग
8 कप्पिया 9 अनुत्तरोववाई दशांग 9 कप्पवडिसिया 10. पण्हावागरणं
10 पुप्फिया 11 विवागसुयं
11 पुप्फचूलिया 12 वह्निदसा
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