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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - दो सित्तरी 1. चरण सित्तरी 2. करण सित्तरी
(इग्यारह अंग और चौदह पूर्व के नाम के अनुसार गिनने पर भी | पच्चीस गुण होते हैं।)
साधु महाराज और उनके सत्ताइस गुण - जो आत्महित को साधते हैं और परहित को साधते हैं अथवा सर्वविरति रूपी चारित्र लेकर मोक्ष के अनुष्ठान को साधते हैं, वह "साधु मुनिराज"। कहलाते हैं।। उनके 27 गुण इस प्रकार हैं -
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प्राणातिपात विरमण 14 रसेन्द्रिय निग्रह मृषावाद विरमण 15 घ्राणेन्द्रिय निग्रह अदत्तादान विरमण 16 चक्षुरिद्रिय निग्रह मैथुन विरमण 17 श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह परिग्रह विरमण
18 लोभ का निग्रह करना रात्रि भोजन त्याग
19 क्षमा धारण करना
20 चित्त को निर्मल रखना पृथ्वीकाय रक्षा
21 वस्त्र वगैरह की पडिलेहना करना अप्काय रक्षा
22 संयम में रहना तेउकाय रक्षा
23 अकुशल मन का निरोध 10 वाउकाय रक्षा
24 अकुशल वचन का निरोध 11 वनस्पतिकाय रक्षा
25 अकुशल काया का निरोध [12 त्रसकाय रक्षा
26 शीतादि परिषह सहन करना |13 स्पर्शन्द्रिय निग्रह 27 मरणान्त उपसर्ग सहन करना
(1) आवश्यक नियुक्ति में बताया है कि निर्वाण साधक योगों कोक्रियाओं को साधते हैं और सभी प्राणियों पर समवृत्ति धारण करते हैं, उस कारण वे "भाव साधु" कहलाते हैं। इसके उपरान्त दूसरे प्रकार से भी सत्ताईस गुण होते हैं।
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