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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
बाढ़ का पानी बैठ गया
वि.सं. 2035 में वागड़ वाले साध्वीजी श्री चन्द्राननाश्रीजी की शिष्याएं चातुर्मास में मोरबी में स्थित थीं। वे मच्छु नदी की भयंकर बाढ़ में फंस गईं। बाढ़ का पानी प्रति सैकंड ऊँचा बढ़ रहा था । साध्वीजी इसलिए तुरंत ही ऊपर की मंजिल पर चले गए। किंतु यह राक्षसी बाढ़ थोड़ी देर में वहां तक भी पहुंच गई। कुशल साध्वीजी पाट पर बैठीं। वहां भी पानी आने से दूसरा पाट रखा। वह भी पानी से डोलने लगा । तब उसे डोरी से बांधकर ऊपर तीन साध्वीजी बैठ गईं। उन्होंने अट्ठम के पच्चकखाण और सागारिक अनशन पूर्वक नवकार का जाप चालु किया। जब तक बाढ़ का संकट रहा, तब तक जाप चालु रखा। धीरे-धीरे बाढ़ का पानी घटने लगा। और साध्वीजी नवकार के प्रभाव से आपदा से बच गईं।
बेहोशी में भी श्री नवकार का जाप
इसी मोरबी मच्छु की एक दूसरी घटना है। एक भाई चुंगीनाके में खोखे पर बैठा था और अचानक ही बाढ़ दौड़ती आई। वह भाई तुरंत ही लकड़ी के केबिन पर चढ़ गया। किंतु जहां बड़े-बड़े मकान भी बह जाते हैं, वहां इस बेचारे केबिन की क्या ताकत ?
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पानी के प्रवाह से केबिन डोलने लगी और उस भाई ने अंतरसे नवकार को पुकारा, 'ओ नवकार! मैंने तेरा सदा जाप किया, तेरी अनन्यभाव से आराधना की है और क्या तुम अब मेरी सहायता नहीं करोगे? ओ शंखेश्वर दादा ! बचाओ...! बचाओ...!" इस प्रकार पूकारपूर्वक प्रार्थना करके वह भाई नवकार के जाप में खो गया। परन्तु उस राक्षसी बाढ़ ने तो जैसे कुछ ध्यान ही नहीं दिया। बाढ़ का प्रवाह केबिन के साथ उस भाई को लेकर चलता बना। नवकार में ही एकाकार बने उस भाई के शरीर में पानी भर गया। वह बेहोश हो गया।
उस भाई को ग्यारह दिन बाद बेहोशी से मुक्ति मिली तब भी उसकी अंगुलियों के वेढों पर अंगूठा घूम रहा था और मन में नवकार चालु था। किंतु चारों ओर देखा तो वह मोरबी में नहीं था। वह बाढ़ के
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