________________
- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अपनी-अपनी सीट के उपर बैठ गये। गाड़ी चालु हुई और कुछ ही देर में | पक्की सड़क पर उन दो परिवारजनों को लेकर गाड़ी दौड़ने लगी।
वह शिखरजी से निकलकर के 'बारइ' पहुँचे और वहाँ गाड़ी खड़ी रखवायी, क्योंकि नवकारसी का समय हो गया था। परन्तु नवकारसी करने की किसी की भावना न होने से आगे जाकर वहां नवकारसी करेंगे, ऐसा विचार कर वापिस गाड़ी में बैठ गये और गाड़ी पुनः चालु हो गई।
शिखरजी के बाद रास्ता सही नहीं था। इसमें "बारई' का रास्ता बहुत संकरा है। उसमें दोनों ओर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गहे थे। इसलिए सामने से आ रहे वाहनों को क्रॉस करने में दोनों ड्राइवरों को बहुत ही ख्याल रखना पड़ता था।
अब "बारई" से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर दूर निकले होंगे कि सामने से एक ट्रक आता दिखाई दिया। मेटाडोर में हसमुखभाई ड्राइवर के पास की सीट पर बैठे थे। इस कारण सामने से आ रहे तेज गति वाले ट्रक को देखकर और आसपास थोड़ी-थोड़ी देर से आ रहे गड़ों की ओर दृष्टि करके एक गहरी विचारधारा में डूब गये। क्योंकि ट्रक गलत साईड में चल रहा था।
अब लगभग 100-150 फीट दोनों गाड़ियों की दूरी थी। संकरे रास्ते में गलत साइड में तथा तेज गति से आते ट्रक को देखकर हसमुखभाई को लगा कि यह ट्रक निश्चित ही आज अपनी जान लेगा और तुरन्त आँखे बन्द करके नवकार मंत्र का स्मरण करने लगे, क्योंकि अब उसके अलावा दूसरा कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था।
__ नवकार महामंत्र के ध्यान में एकतान बने हुए हसमुखभाई अभी |उसी प्रकार ध्यानमग्न थे और ट्रक गुजर गया। साथ में दुर्घटना भी घटी ही, किन्तु बहुत बड़ा चमत्कार हुआ!
हसमुखभाई को ध्यान में धक्का लगा और आंखें खोलकर देखा तो वह ट्रक उस मेटाडोर को जोरदार टक्कर मारकर आगे बढ़ गया था, और उसके परिणाम स्वरूप मेटाडोर पास की टेकरी पर चढ़ गई। काँच टूट
215