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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
समरो दिन और रात
यह बात संवत् 1987 के लगभग की है। मेरी उम्र 17-18 वर्ष की थी। मैं तब लालबाग में था। तब पोखराज नाम के एक राजस्थानी भाई सर्राफ का व्यवसाय करते थे। तब पठानी लोगों में गुंडागिरी ज्यादा थी। एक रात पोखराजभाई की दुकान में वे चोरी करने की नियत से आये । किन्तु भूल से पास में जो चक्की थी, उसे तोड़कर अन्दर घुसे। फिर पोखराजभाई की दीवार तोड़ना प्रारम्भ किया, जिसकी आवाज से पोखराजभाई जग गये । | उनके रहने का दुकान में ही था। उन्होंने अपनी पत्नी को उठाया और जहाँ से आवाज आ रही थी उस दीवार के पास अपनी लोहे की सन्दूक रखकर खुद पीछे के दरवाजे से बाहर निकल गये और दौड़ते दौड़ते जहाँ चार रास्ते मिलते थे, वहाँ खड़े रह गये। वहाँ कोई मिले तो उसकी मदद की राह देखने लगे। किन्तु दो बजे के समय कोई भी नजर नहीं आया। बहुत प्रयास किये। पत्नी की भी चिन्ता थी। किन्तु अन्त में नवकार मंत्र गिनने के अलावा दूसरा मार्ग नहीं सुझा । जहाँ खड़े थे, वहाँ एक लोहे का छः फीट का कांच की खिड़की वाला खम्भा ध्यान में आया। कांच तोड़कर हेन्डल घुमाने से अग्निशमन वाले आ पहुंचे।
उनको दुकान के पास ले जाने पर, उन्होंने पठानों को पकड़ लिया। हम चार-छः लोग दुकान से थोड़ी दूर आगे के फुटपाथ पर सोये हुए थे और खड़खड़ाहट की आवाज से जग गये। यह घटना हमारे सामने घटित हुई है। तब पोखराजभाई के मुंह में एक ही उद्गार था कि- "वास्तव में नवकार महामंत्र ने ही मुझे बचाया है। "
लेखकः- शा भवानजीभाई मुरजी भोजाणी खार, मुम्बई
विघ्न विनाशक श्री नवकार
संवत् 2030 के चातुर्मास हेतु हम दो ठाणे जामनगर की ओर विहार कर रहे थे। वैशाख वदि अमावस्या के दिन कोटड़ा पीठा गांव में
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