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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बड़ा उपकार हुआ। घर में शांति हुई।"
अभी इस परिवार के सभी परमार क्षत्रिय जैन धर्म का शुद्ध पालन कर रहे हैं। सभी खेत-बाड़ी, बाग-बगीचे का कार्य करके सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनके परिवार में से एक युवक ने आचार्य श्री चन्द्रोदयसूरीश्वरजी के पास दीक्षा ली है।
लेखक - पू.आ.श्री इन्द्रदिन्नसूरिजी म.सा.
"नवकार और मैं" 7
सौराष्ट्र में श्री पादलिप्तपुर -पालीताणा और दूसरी ओर प्यारा गढ़ गिरनार। इस गिरनार की गोद में गांव जैतपुर। बाल्यकाल में मुझे माताजी अंगुली पकड़कर जैन पाठशाला में ले जाते थे। ज्ञानदान देने वाली बहिन ने "नवकार" सिखाया। जैनशाला में छोटी-छोटी कथा-वार्ताओं की पुस्तकें रखते थे। मैंने अमर कुमार की कथा पढ़ी। अमर कुमार को नवकार मंत्र कैसा फलीभूत हुआ था, वह बात मेरे मन में अंकित हो गई। मैंने क्रमशः पंच प्रतिक्रमण पूरे किये। नवस्मरण भी कंठस्थ किये।
प्रतिदिन नवकार गिनने का चालु किया। नवकार के प्रति अहोभाव जाग्रत हुआ। फिर तो मैंने आराधना, जाप, स्मरण शुरू किया। एक बार श्री शंखेश्वर तीर्थ में 27 दिन अखंड नवकार के जाप की आराधना का प्रसंग था। वहां पहुंचने के बाद मुझे समाचार मिले कि महिलाओं के लिए जाप अलग उपाश्रय में रखा है।
मैंने इस प्रकार अखंड मौन सहित 27 दिन एकासन तप के साथ साधना की। पू.पं. श्री भद्रंकरविजयजी म.सा., प.पू. श्री अभयसागरजी म.सा, पू. जंबूविजयजी म.सा. आदि की निश्रा में नवकार मंत्र पर व्याख्यान एवं वार्तालाप रखा हुआ था। किरण भाई, रिखबदासभाई वगैरह भी थे। नवकार मंत्र पर विस्तार से विवेचन होता था। साधना पूरी हुई। परंतु जो आनंद प्राप्त हुआ, उसका वर्णन नहीं हो सकता। फिर तो मुझे पू. आचार्य भगवंतों आदि पदस्थ मुनियों के सत्संग में
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