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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? दूं? अरे! यह तो अब परमेष्ठि मंत्र के जाप से मंत्रित बन गये हैं। इसलिए फेंके नहीं जा सकते हैं। मैं इन सभी पत्थरों को तो साथ में ले जाऊँ। घर रमूंगा। यहाँ तो किसी के पैर में आने से आशातना होगी। .
इस प्रकार विचार कर उन भाई ने वे 108 कंकड़ अपनी धोती के एक छोर में बांध लिये और रात्रि व्यतीत करके सवेरे अपने घर पहुँचे। पत्नी ने नहाने के लिए पानी वगैरह रखा। भाई नहाने गये। वह कपड़े बदलते धोती में से कंकड़ों को निकालना भूल गये।
इस ओर उनकी पत्नी ने वह कपड़े देखे। गांठ में कुछ बंधा हुआ देखकर उसे खोला!
वहाँ तो चमत्कार! वह बहिन देखते ही सन्न रह गई। क्योंकि कंकड़ों के स्थान पर उसमें जगमगाते-चमकते अति-कीमती रत्न दिखाई दे रहे थे। बहिन को लगा कि, 'यह क्या? मेरे पति के पास ऐसे कीमती रत्न कहाँ से आये? किस प्रकार लाये? क्या वे आज धर्मच्युत हुए हैं?'
इस प्रकार अनेक प्रश्नों की हारमाला उसके दिमाग में घूमने लगी। इतने में ही उसके पति आ पहुँचे। इस प्रकार विचारमग्न पत्नी को देखकर उन्होंने पूछा- "भद्रे! क्या बात है? किसका विचार कर रही हो? और हाथ की मुट्ठी में क्या है?"
ऐसा कहकर देखने के लिए मुट्ठी खोलने गये, तब बहन ने मुट्ठी | खोलते हुए कहा, "नाथ! क्या रत्नों को देखकर आप भी धर्म से चलित हुए हो? कभी आपने ऐसा नहीं किया, आज कैसे?"
उस भाई को यह सुनकर धक्का लगा और साथ में धोती के छोर |में रात को खुद द्वारा बाँधे हुए कंकड़ों को रत्नों के रूप में देखकर वे अर्चभित रह गये।
किंतु फिर यह जानकर कि यह सब नवकार का ही प्रभाव है, अपनी पत्नी को कहा कि- "भद्रे! मैंने अभी तक परद्रव्य को पत्थर के समान माना है। तो आज ऐसे कैसे कर सकता हूँ? किंतु, यह तो नवकार मंत्र की लीला है।" यह कहकर पूरी बात विस्तार से सुनाई।
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