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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मुसलमान भी इतने में वहां आ पहुंचा। उसे यह पता नहीं था कि मेरी पुत्री को सांप ने डंक मारा है। उसके हदय में आज अपार खुशी थी कि आज उस भक्त मुसलमान का ठीक पत्ता मैंने काटा है, किन्तु घटना यह घटी कि श्रद्धालु मुसलमान तो नवकार मंत्र के प्रभाव से एकदम बच गया, उसे कोई तकलीफ नहीं आई और वह तो निश्चित बनकर सो गया। वह दुष्ट मुसलमान अपनी पुत्री के पास आया तब उसे पता चला कि मेरी पुत्री को सांप ने डंस दिया है, जिससे उसके होश उड़ गये। उसने कई उपचार करवाये। मंत्रवादियों को बुलाया, किन्तु जहर नहीं उतरा। आशा-निराशा में बदल गई। मुसलमान दुःखी हुआ और "हाय! मेरी पुत्री मर जायेगी। किसी ने उसका जहर नहीं उतारा, अब क्या होगा?'' इस चिन्ता में आन-भान भूल गया।
- थोड़ी देर बाद उसे स्वयं आभास हुआ कि, 'वास्तव में मैंने दूसरे को मारने का प्रयास किया था, उसका यह परिणाम है, कि आज मेरे स्वंय के लिए रोने का समय आया। "जो खड्डा खोदता है वही उसमें | गिरता है" यह कहावत सही हुई है, किन्तु अब क्या होगा?"
इतने में इसे एक विचार आया कि, 'अब उस श्रद्धालु मुसलमान के पास जाऊँ और उसके चरणों में गिरकर अपने अपराध की क्षमा मांगे। वह जरुर मेरी पुत्री के प्राण बचा सकेगा।' वह विलम्ब किये बिना उस श्रद्धालु मुसलमान के पास दौड़ा। वह घोर निद्रा में निश्चित बनकर सोया हुआ था। उसे इस भाई ने उठाया। "कैसे आना हुआ" श्रद्धालु मुसलमान ने पूछा।
"भाई साहब! मैं आपके चरणों में गिरता हूँ। मुझे मेरे अपराध की क्षमा दो! मैं अपराधी हूँ।"
वह श्रद्धालु मुसलमान विचार में पड़ गया कि, "यह किसकी माफी मांग रहा है? क्या बोल रहा है? कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"
"क्या हुआ भाई? किसलिए माफी मांगते हो? तुमने मेरा कोई अपराध नहीं किया है। ऐसे क्यों अनुचित बोल रहे हो?" श्रद्धालु
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