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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
और कहां मेरा उसके साथ समागम ?
अनादिकाल से मेरी आत्मा अज्ञानता आदि के योग से निरंतर संसार में भटक रही है। आज मुझे परम शरण की प्राप्ति हुई है। क्योंकि पंच परमेष्ठियों को किया गया नमस्कार ही संसार में भटकती मेरी आत्मा के लिए शरण रूप है।
अहो ! क्या यह नवकार महारत्न है? अथवा चिंतामणि समान है ? या कल्पवृक्ष समान है? नहीं, नहीं, नवकार तो उन सबसे बढकर है। क्योंकि चिन्तामणि वगैरह तो एक भव में ही सुख के कारण हैं, जबकि नवकार तो स्वर्ग और मोक्ष देने वाला है, मुक्ति प्राप्त न हो तब तक भवोभव में सुख को देने वाला है।
है आत्मन् ! पर्वत को मूल से उखाड़ना दुर्लभ नहीं, देवलोक में सुख प्राप्त करना दुर्लभ नहीं है। दुर्लभ तो भाव से नवकार की प्राप्ति होना, यह है। क्योंकि मंदपुण्यवाले आत्माओं को कभी भी नवकार की प्राप्ति नहीं होती है। यह भाव नमस्कार असंख्य दुःखों के क्षय का कारण है। इस लोक एवं परलोक में सुख देने में कामधेनु समान है। हे आत्मन् तू आदर पूर्वक इस महामंत्र का जप कर ।
हे मित्र मन ! सरल भाव से तुझे प्रार्थनापूर्वक कहता हूँ कि, संसार सागर को पार कराने वाले इस नवकार मंत्र को जपने में प्रमादी मत बनना । यह भाव नमस्कार उत्ष्ट सर्वोत्तम तेज है, दुर्गति का नाश करने के लिए प्रलयकाल के पवन के समान है, स्वर्ग और मोक्ष का सही मार्ग है। भव्य पुरुषों द्वारा हमेशा पढ़ा जाता, गिना जाता, सुना जाता, चिन्तन किया जाता यह नवकार मंत्र सुख एवं मंगल की परम्परा का कारण है। तीनों जगत् की लक्ष्मी सुलभ है, अष्ट सिद्धियां सुलभ हैं, महामंत्र नवकार की प्राप्ति ही दुर्लभ है। इसलिए हे आत्मन्! इस नवकार को परम शरण रूप मानकर उसकी ओर अत्यंत आदर और बहुमान रखकर एकचित्त से उसका स्मरण करते रहना ।
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