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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? निर्मल भाव से किया गया नवकार का स्मरण कभी निष्फल नहीं जाता है। परन्तु साधक को बिना समय फल देखने की उत्कंठा नहीं रखनी चाहिये। उसे यह समझना चाहिये कि बीज बोते ही फल खाने की आशा रखना मूर्खता है। प्रत्येक वस्तु समय मांगती है।
देख सकें ऐसा फल आने में विलम्ब हो जाए तो यह नहीं कहा जा सकता, कि साधना निष्फल गयी। जिस प्रकार कोई पत्थर तोड़ने के लिए चालीस प्रहार करने पड़े, वहां प्रथम के तीस प्रहार तक तो कोई परिणाम नहीं आया। इकतीसवें प्रहार में पत्थर में दरार आई और चालीसवें प्रहार से पत्थर टूट जाता है। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि पूर्व के तीस प्रहार व्यर्थ गये। ऐसा ही कुएं की खुदाई में होता है। जिस प्रदेश में चालीस हाथ खोदने पर पानी निकलता हो, वहां प्रथम तीस हाथ तक खोदने तक पानी के चिह्न ही नहीं दिखाई देते फिर भी वह प्रयास निष्फल नहीं माना जा सकता। टी.बी. में लम्बे समय तक डेढ़-दो वर्ष औषधि लें तभी ही ठीक होता है। यदि औषधि एक सप्ताह लेने के बाद टी.बी. नहीं मिटता है, तो ऐसा नहीं कहा जा सकता कि औषधि नाकामयाब है। नौकरी करने वाले को भी तीस दिन सेवा देने के बाद ही तनख्वाह हाथ में आती है।
जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में फल प्राप्त करने से पूर्व धैर्य रखकर उद्यम जारी रखना पड़ता है।
लगन, कौशल्य एवं प्रेमपूर्वक सेवा देने वाला नौकर वर्षों बीतने के बाद हिस्सेदार बन जाता है, उसी तरह धैर्य, लगन और निष्ठापूर्वक नवकार का सतत जप करने वाला साधक स्वयं एक दिन परमेष्ठिओं में स्थान प्राप्त करता है, यह निश्चित है।
अब विवाद न कर, आजमाकर देखो। एक संत ने कहा है :"विवाद करे सो जानिये, नुगरे के यह काम, संतों को फुरसत नहीं, सुमिरन करते नाम। जब ही नाम हिरदे धरा, भया पाप का नाश, मानो चिनगी आग की, परी पुराने घास॥"
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