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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - करके अनेकों को जीवन दान भी दिया।
वि.सं. 2033 में राजेन्द्रसूरि ज्ञान मन्दिर में पूज्य उपकारी गुरुदेव चातुर्मास कर रहे थे। भाद्रवा वदि के किन्हीं दिनों में भीनमाल निवासी महेता सुमेरमलजी हस्तीमलजी एकाएक गुरुदर्शनार्थ आये तथा वन्दना करने के पश्चात् श्री महेताजी ने कहा, "गुरुदेव! सोने की एक कंठी गुम हो गई है। घर पर खूब खोजा-खूब खोजा, परन्तु नहीं मिली है। चिन्ता भारी| है, क्या करूं?" गुरुदेव ने तत्काल कहा, 'मेहता, शीघ्र ही अभी भीनमाल के लिए रवाना हो जाओ। महामंत्र का स्मरण करके पुनः खोजबीन घर पर ही करो। कार्य सिद्ध हो जावेगा।' वास्तव में गुरुदेव के मार्गदर्शन के अनुसार मेहताजी ने ऐसा किया तो सोने की कंठी मिल गई थी।
वि.सं. 2034 में राजगढ़ चातुर्मास के अन्दर रिंगनोद (मध्यप्रदेश) निवासी मूलचन्दजी लुणावत पूज्य उपकारी गुरुदेव के पास आये तथा वंदना करके कहने लगे, "महाराज सा.! मैं एक अति आर्थिक संकट में उलझा हुआ हूँ, कुछ उपाय बताईये। तब गुरुदेव ने कहा कि, 'मास्टर! नियमित रूप से श्री नमस्कार महामंत्र कम से कम एक महिने तक उठते, बैठते, सोते, जागते, चलते, फिरते, बात करते, चौबीसों घंटों "अजपाजाप" मानस जाप करो तो कार्य हो जावेगा। श्री मास्टर सा. ने ऐसा ही किया
और उन्हें आर्थिक संकट से मुक्ति मिल गई। _ वि.सं. 2034 में अहमदाबाद निवासी बाबुभाई मंगलदास सेठ ने एक दिन पूज्य गुरुदेव से कहा कि, 'साहेब, मुझे आशीर्वाद प्रदान करो।' तब उपकारी करुणानिधान ने कहा कि "तुम्हारी सेवा जरूर फलीभूत होगी। नवकार मंत्र ऊपर सफेद वर्ण से यह मंत्र गिनो।' वास्तव में बाबुभाई का अटका हुआ कार्य हो गया था।
अन्धकार में प्रकाश, दुःख में सुख, समस्या में समाधान, मृत्यु में जीवन प्रदान करने की श्री नवकार मंत्र में अद्भुत शक्ति स्वतः समाविष्ट है। एक अद्भुत प्रसंग___वि.सं. 2032 में जोधपुर, कापरड़ाजी, अजमेर, जयपुर, भरतपुर,
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