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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? आश्चर्य का अनुभव होता रहता है। सांसारिक अवस्था में तो तीन बार प्रत्यक्ष मौत के मुख से निकलकर धर्मश्रद्धा और वैराग्य में ठीक-ठीक अभिवृद्धि हुई थी। किन्तु एक आश्चर्यप्रद घटना दिनांक 3-7-99 शनिवार (द्वि.जेठ वदि चौथ) के दिन सुबह-सुबह 5-40 के समय घटित हो गई।
वि.सं. 2055 (ई.स. 1999) का चातुर्मास गच्छाधिपति श्री जयघोषसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञा से श्री महावीर नगर जैन उपाश्रय-नवसारी में तय हुआ था, जहाँ चातुर्मास प्रवेश हेतु मंगल दिन दिनांक 8-7-99 रविवार का था। ठीक उसके ही एक दिन पूर्व श्री आदिनाथ संघ के नूनत उपाश्रय में था। शुक्रवार की रात में श्रावकों को प्रतिक्रमण करवाने वक्त सज्जाय के स्थान पर मृत्यु की समाधि से संबंधित पद गीत में सुनाये और समझाया कि जब जीवन की अंतिम क्षण आवे तब दुष्कृत गर्हा-सुकृत अनुमोदना और चार शरण ग्रहण करके पंडित मृत्यु प्राप्त कैसे की जाय।
- प्रतिक्रमण के पश्चात् श्रावकादि ज्ञान-गोष्ठी कर स्वगृह की ओर चले गये, जबकि मैं जाप में प्रविष्ट हो गया और कुछ देर से संथारा कर सो गया। शुक्रवार के दिन भी आयंबिल का विघ्नहारी मंगलकारी तप था और शनिवार को भी आगे-आगे आयबिल ही करना था। शुक्रवार की रात्रि देहश्रम विसर्जन हेतु व्यतीत हो गई और शनिवार को ब्राह्ममूर्त में उठकर ध्यान में प्रवेश किया। . ग्रीष्म ऋतु के दिन उजाला लगभग पौने छह-छह बजे तक प्रर्याप्त हो जाता है। इसलिए प्रातःकालीन प्रतिक्रमण पौने छह के आसपास प्रारंभ करना था। किन्तु ठीक पांच पचास मिनट पर उपाश्रय के विशाल मकान में चरचराहट की आवाज आयी। मेरा ध्यान भंग हो गया। आवाज विचित्र-सी थी, और लगा कि कहीं गोलीबार हो रहा है। किन्तु कुछ ज्यादा विचार करूं-न-करुं इतने में तो ऐसी भयानक आवाज आयी कि लगा जैसे तोपगोले कहीं से छूटे हैं। __इन्हीं दिनों में पाकिस्तान-भारत के बीच सीमा रेखा के संबंध में
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