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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
से कहा, 'दूसरा भले ही कुछ न हो, किन्तु मैं पानी पी सकूं ऐसा कुछ करो।' उन्होंने आश्वासन दिया, 'आज रात निकाल दो कल सुबह इस हेतु प्रबंध करूंगा । नली से मैं तुम्हें पानी दूंगा।'
मैं घर आया। प्यास की पीड़ा असह्य थी। मुझे पहले कहा गया है उस प्रकार एकाएक नवकार महामंत्र का स्मरण करने की स्फुरणा हुई।
तब शाम के लगभग साढ़े सात बजे होंगे, मैंने बाहर से कोई नहीं आये, और कुछ भी विक्षेप न हो, इसीलिए घर के सभी दरवाजे बंद करवाये। कुटुम्बीजनों को इकट्ठा कर सभी के साथ खमतखामणे (क्षमायाचना ) किये। जिन्दगी भर में हुए वैर विरोध के लिए सभी से माफी का लेन-देन कर दिया और साथ में जगत के सभी जीवों को खमाकर ( क्षमायाचना कर) अंतःकरण पूर्वक मैत्री भाव की उद्घोषणा की:
खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं न केणई ||
और भावना भाई कि, जगत के सभी जीव सुखी बनें, जगत के सभी जीवों का कल्याण हो, कोई पाप नहीं करें, कोई दुःख प्राप्त नहीं करें। जगत के सभी जीव कर्म से मुक्त बनें।'
मैं अन्तःकरण की गहराई से यह भावना कर नवकार के ध्यान में लग गया। कहीं मेरी दुर्गति न हो जाए इस भय से मैं खूब जागृतिपूर्वक नवकार मंत्र में लीन बन गया। अब मुझे दूसरी कोई आवश्यकता नहीं थी। मुझे सद्गति की धून लग गयी थी। सद्गति हो इसलिए बीस-पच्चीस नवकार और फिर सभी जीवों के प्रति मैत्री की पूर्वोक्त भावना में लग गया। उसमें चित्त लगाने से मैं पीड़ा को थोड़ा भूल गया।
मुझे 11 बजे जबरदस्त उल्टी हुई। पूरा बर्तन भर गया। मैं बेहोश हो गया। घर के लोग समझे कि यह अंतिम स्थिति है। रोना चिल्लाना शुरु हो गया, मैं थोडी देर बाद होश में आया। मुझे कुछ अच्छा लगा। मैंने पानी मांगा। मैं दो-तीन लोटे पानी पी गया, परन्तु मुझे अभी भी वही धून थी कि कहीं सद्गति चूक न जाऊँ। नवकार और भावना चालु रखी।
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