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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? उत्तर : केवलज्ञान आदि आंतरिक स्वरूप की अपेक्षा से कोई अंतर नहीं है, किंतु अरिहंत परमात्मा के तीर्थकर नाम कर्म के उदय से 8 महाप्रातिहार्य, 34 अतिशय एवं वाणी के 35 गुण आदि होते हैं, वह सामान्य केवली भगवंतों के नहीं होते हैं। अरिहंत परमात्मा चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ की स्थापना करते हैं, सामान्य केवली वैसा कुछ नहीं करते हैं।
प्रश्न 6. छद्मस्थ ऐसे आचार्य-उपाध्याय भगवंतों को तो तीसरे एवं चौथे पद में नमस्कार किया गया है, जबकि सर्वज्ञ ऐसे सामान्य केवली को पांचवे पद में नमस्कार किया गया है। यह कहां तक उचित है?
उत्तर : शासन-गच्छ के सुव्यवस्थित संचालन की जिम्मेदारी आचार्य-उपाध्याय भगवंतों पर होती है। सामान्य केवली भगवंतों पर ऐसी जवाबदारी नहीं होती है। इसलिए ही तो तीर्थकर परमात्मा की देशना पूर्ण होने के बाद उनकी पादपीठ पर बैठकर छद्मस्थ ऐसे भी प्रथम गणधर भगवंत देशना देते हैं, तब सामान्य केवली भगवंत भी इस पद के गौरव को बनाये रखने के लिए उनकी देशना में उपस्थित रहते हैं।
इस तरह व्यवहार नय से आचार्य-उपाध्याय पद का विशिष्ट महत्त्व होने से उन्हें सामान्य केवली भगवंतों से पहले नमस्कार किया जाता है।
प्रश्न 7. गणधर भगवंतों का समावेश नवकार के कौन से पद में होता है?
उत्तर : तीसरे पद में होता है।
प्रश्न 8. वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में कितने सिद्ध भगवंत विचरण कर रहे हैं? केवल संख्या में उत्तर दें।
उत्तर : 0(इस प्रश्न के उत्तर में सभा में से कई प्रत्युत्तर मिलते हैं। उदाहरण 20/170/2 करोड़, असंख्य, अनंत इत्यादि। अरिहंत-सिद्ध और सामान्य केवली के बीच अंतर स्पष्ट नहीं होने के कारण ऐसे उत्तर मिलते हैं। वास्तव में तो सिद्ध परमात्मा अशरीरी होने के कारण विचरण कर ही नहीं सकते है। वे तो सिद्धशिला के ऊपर अरूपी आत्मस्वरूप में
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