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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? द्वारा जाना था। मेरे मामा मूलजीभाई ने कहा कि रात को 9 बजे बस रवाना होती है और सवेरे पांच बजे पलांस्वा पहुंचती है। वहां तुम्हें |भुटकीआ -भीमासर जाने हेतु अहमदाबाद -भुज की बस में बैठना होगा। में तो भुज की बस में बैठा। सर्दी के दिन थे। ठंड ज्यादा थी। सर्दी के दिनों के कारण यात्री बहुत कम थे। गाड़ी तो रात में तीन बजे ही पलांस्वा पहुंच गयी। गाड़ी गांव में नहीं गयी। मुझे रोड़ पर ही उतार दिया। मैंने गांव देखा हुआ नहीं था। गांव में जैनों के 20-25 घर थामने गांव का रास्ता भी नहीं देखा हुआ था। मुझे गांव में किस प्रकार जाना? अब मुझे क्या करना? सर्दी की मौसम की आधी रात। कोई जानवर आ जाये तो मुझे चीरकर खा जाये। लूटेरे मिले तो लूटकर मेरी लाश को ठिकाने लगा दें। मर जाऊँ तो किसी को पता ही नहीं चले, क्योंकि में अकेला था। मैं हाथ में थैला लेकर और कम्बल ओढकर नमस्कार महामंत्र गिनता गिनता गांव में जाने हेतु निकला। रास्ते में थोड़ा आगे बढ़ा
और वहां श्मशान आया। मुझे तो डर लगने लगा, भूत-प्रेत याद आने लगे। जैसे-जैसे गांव में आगे बढ़ा, वैसे वैसे बबूल के पेड़ ज्यादा आने लगे, और डर ज्यादा लगने लगा। चांदनी रात। हदय काम नहीं करे! करना क्या? मेरा नवकार मंत्र चालु ही था। मैंने सोचा, नसीब होगा तो जाया जायेगा। नवकार मंत्र बचाये तो ही रास्ता है। दूसरा कोई रास्ता नहीं है।' में गांव में पहुंच गया। गांव में किसके घर जाकर दरवाजा खटखटाऊं? तालाब के किनारे पर बस खड़ी थी। वही गाड़ी भुटकीआ-भीमासर जाने वाली थी। तब चार बजे थे। मैंने ड्राईवर-कंडक्टर से कहा कि "भाई मुझे तुम्हारी ही बस में भुटकीआ-भीमासर जाना है। तुम्हारी बस में बैठने दो तो मेहरबानी होगी। खूब ही विनति की, लेकिन वे नहीं माने। ड्राईवरकंडक्टर ने कहा कि हमारा कानून है कि आधी रात को बस का दरवाजा नहीं खोल सकते। दरवाजे को ताले से बन्द किया जाये। अंत में मैं बस के पास खड़ा-खड़ा नवकार गिनने लगा। आखिर में नमस्कार मंत्र की विजय हुई। उन दोनों के हदय नवकार ने परिवर्तन कर दिये। मुझे उन्होंने बस में बैठने दिया। मैं बस में आराम से बैठ गया। मुझे बस में बिठाने
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