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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? लिए उपालम्भ दिया और पूछा कि, 'अंधेरे में तुम किस प्रकार आ सके?' तब पिताजी को भान हुआ कि प्रकाश तो मिलता ही था। उसके कारण ही में यहां पहुंचा हूँ, नहीं तो असम्भव था। वह लकड़ी अभी भी हमारे | पास है। उस नवकार को भी हमने अभी तक साथ रखा है, किन्तु उपयोग छूट से करते हैं। अस्तु
नवकार नाम का डॉक्टर /
प्रतिवर्ष हम काफर्ड बाजार में से कुछ पक्षी खरीदकर उसे हमारी छत पर उड़ा देते हैं। हम 1993 में ऐसी ही रंग बिरंगी 500 जितनी चिड़ियाएं ले आये। गर्मी के दिन थे। मुम्बई से घाटकोपर टेक्सी में घर पर लाये। सभी को पानी दिया, दाना दिया, नवकार मंत्र बोलकर पिंजरों के दरवाजे खोले, चिड़ियाएं उड़ने लगीं।
पूरा आकाश स्वतंत्रता, आनन्द और चिड़ियाओं से भर गया। हमारे हदय में कुछ अच्छा करने का संतोष था। दो-चार चिड़ियाएं नहीं उड़ी थीं। उन्हें भी पिंजरा बजाकर उड़ा दिया। किन्तु एक चिड़िया बीमार होगी। ऐसे भी ऐसी चिड़ियाएं दूसरे प्रान्तों में से यहां बेचने के लिए आतीं। वह आधी भूखी, प्यासी, प्रतिकूल जलवायु के कारण अधमरी तो हो ही जाती
उस बीमार चिड़िया को हम नीचे हमारे घर में लेकर आये। उस पर पानी छिड़का, दाना डाला (वैसे तो वह खा सके वैसी नहीं थी किन्तु हमें उचित लगा) और एक प्लास्टीक के ढक्कन वाली टोकरी में उसे रखा। रात में उसे फिर देखने गये। वह अधमरी जैसी लगती थी। तिरछी पड़ी थी। गर्दन खिंच गयी थी। श्वास बहुत तेजी से चल रहा था और आंखें ऊपर चढ़ गयी थीं। हमें दुःख लगने लगा।
अब अभी ही प्राण उड़ जायेंगे। अभी ही गयी समझो। किसी के प्राण जा रहे हों तब तो नवकार मंत्र सुनाना यह हम सभी की आदत है। हमने नवकार शुरू किया। थोड़े नवकार गिनकर में तो कमरे में आ गया।
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