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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - "भले ही, मैं कल व्याख्यान दूंगा"-मुनिराज ने गंभीरता से कहा। दूसरे दिन सवेरे भाविकों की भीड़ लगी। बहुत लम्बे समय के बाद साधु महाराज के मुख से धर्मोपदेश सुनने को मिलेगा, इस कारण सभी के मुँह पर आनंद था। ___ मुनिराज ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। देवदर्शन नहीं करने वाले श्रावकों ने प्रतिदिन प्रभु दर्शन हेतु आने का निश्चय किया। . ___ "जिस प्रकार नाव से सागर पार किया जाता है, उसी प्रकार महामंत्र से भवसागर पार किया जाता है। जैन शासन में मनुष्य को | भवसागर से पार करने के लिए महामंत्र नाव है। कितने भी कठिन समय में नवकार महामंत्र का स्मरण करने से कठिन से कठिन विघ्नों का नाश होता है। बात इतनी ही है कि उसका स्मरण दिल से होना चाहिए।"-मुनिराज ने सभी को महामंत्र का पाठ सिखाया। ___परन्तु इतने से मंत्र पर श्रद्धा बैठे कहां से? श्रोताओं ने. केवल आश्चर्य व्यक्त किया। उनको इस मंत्र के ऊपर इतना विश्वास नहीं आ रहा था।
"हे जिन! अचिंत्य महिमावान आपकी स्तवना तो दूर रही, परन्तु आपका नाम स्मरण भी तीन जगत के जीवों का इस संसार में रक्षण करता है।"-मुनिराज ने अपना वक्तव्य आगे बढ़ाया।
इतने में तो 'प्रभु, प्रभु बोलता हुआ एक आदमी आया और मुनिराज के चरणों में गिर पड़ा। उसकी आंखें लाल थीं। उसके कपड़े भीगे हुए थे। उसके पैरों में से खून निकल रहा था। वह अति थका हुआ लग रहा था।श्रोताजन आश्चर्य में डूब गये। यह क्या? मुनिराज आगंतुक की तरफ घुर-घुरकर देख रहे थे। उन्हें वह कहीं देखा हुआ लग रहा था।
"गुरुदेव! मैं खंभात के सेठ सौदागर जगमल शाह का पुत्र हूँ।" "कौन, सेठ जगमल शाह?"
" हाँ, गुरुदेव! मैं जगमलशाह का पुत्र हूँ। धर्म पर मुझे श्रद्धा नहीं, मेरे पिताजी को मेरी नास्तिकता से बहुत दुःख होता था। मुझे बहुत
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