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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
का मार्ग पार कर चुके थे। फिर भी किसी गांव का नामोनिशान नहीं था। न ही वहां राहदारी था। भयानक जंगल था, निर्जन स्थान था। पू. गुरुणीजी म.सा. को हार्ट की शिकायत थी। सीने में एकदम दर्द उठा। अब साथ में जल भी नहीं था तो दवाई कैसे दें। सभी घबराने लगे। अब क्या करें ऐसे स्थान पर ! हम सब ने श्रद्धापूर्वक नवकार मंत्र का जाप शुरू किया और इसी स्थिति में आगे बढ़े कि एक झोंपड़ी झाड़ियों के बीच नजर आई। जाने के लिए छोटा सा रास्ता था। अतः हम में से दो तीन जनों ने जाकर देखना चाहा। जाकर देखा तो वहां एक भैंस बन्धी है और किसान के वेश में एक व्यक्ति वहां बैठा है। अब हमने उसे हमारी समस्या सुनाई। बिना हिचकिचाहट के उसने भैंस का दूध निकालकर दिया। एक वृक्ष के नीचे पू. गुरुणी मैया को ठहराकर दूध के साथ गोली दी। कुछ विश्राम एवं स्वस्थता के पश्चात् उसकी दयालुता की प्रशंसा करते आगे बढ़े। सहज ही पीछे झुककर देखा तो न वहां कोई झोंपड़ी थी, न आदमी, न भैंस । आश्चर्यान्वित होकर दांतों तले अंगुली दबा ली। हमारी आंखें तो धोखा नहीं दे सकती, पर उस निर्जन स्थान पर नवकार ने ही हमारी सहायता की थी!
महाराष्ट्र सौरभजी म. की सुशिष्या साध्वी सुमन प्रभा "सुधा"
भयभंजक नवकार
वैसे तो परम्परागत एवं मान्यतावश नवकार मंत्र की उपासना जैन जगत में सर्वविदित है । परन्तु कभी-कभी अन्दर की श्रद्धा की अभिव्यक्ति जब होती है तो स्मृति में वे बातें सदा याद बनी रहती हैं। उन अनुभवों के तीन प्रसंग यहां पर अंकित किये जा रहे हैं।
(1) विहार में हम ठाणा 3 पाली जिले के जैतारण से चंडावल गांव में एक स्थानक में थे। यहां पर मन्दिरमार्गी समाज के घर नहीं थे। गरमी का समय था । दरवाजे दो तरफ से खुले थे। रात्रि के प्रायः 12 बजे किसी जहरीले जानवर ने हाथ पर डंक मारा। नींद खुल गई। शरीर में
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