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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - जा सकती थी। इस प्रकार मुश्किल से घर पहुंचकर, वैद्य के कहने के अनुसार उपचार करने से पेट के भाग में जो गांठ थी वह बाहर आ गई।
छोटी केरी के आकार की पत्थर जैसी कठोर गांठ बाहर की ओर निकल आई। वैद्यजी के कहने के मुताबिक उपचार करने से गांठं बाहर की ओर फुटी। नल में से पानी की धार छुटे उस प्रकार मवाद एवं काले खून का फव्वारा छूटा। रोग लगभग पेट के दाहिने हिस्से में से होकर पीछे करोड़रज्जु (रीढ़) तक कठोर पत्थर की तरह इकट्ठा हो गया था। यह सब वैद्यजी के उपचार से ही फुटकर मवाद और काले खून से मिश्रित |चार-पाँच किलो कचरा बाहर निकल गया। इस प्रकार में मौत में से
नवकार महामंत्र के प्रभाव से बच गई। उसी समय में हमारी पहचान के |पास के गांव में दो जने पच्चीस से पैंतीस वर्ष की उम्र के, इसी प्रकार के रोग से मुम्बई में मर गए थे। यह सब देखकर मुंबई में रहने वाले हमारे संबंधियों ने अति दबाव के साथ पत्र लिखे कि, 'तुम मुंबई आ जाओ और ऊँट वैद्यों के भरोसे कच्छ में कैसे बैठे हो?' ऐसे कई कारणों से उनके मन के समाधान के लिए हम रोग के निदान हेतु मुम्बई गये। वास्तव में रोग का उपचार तो हो गया था। किंतु कमजोरी बहुत आ गई थी। इस कारण हवाई जहाज द्वारा मुझे मुम्बई ले गये। वहाँ निदान हुआ। पूरी जाँच की किंतु किसी प्रकार के जंतु नहीं हैं और सामान्य फोड़ा है, इस प्रकार डॉक्टरों ने कहा। शक्ति का उपचार करके हम वापिस देश (कच्छ) में आ गये।
हम मुम्बई में हरकिशन अस्पताल में थे। इसी दौरान हमारे पास के गांव कच्छ-भोजाय की एक बाई को इसी अस्पताल में लाया गया। मेरे जैसी ही उनके रोग की स्थिति थी। किंतु डॉक्टरों ने जाँच करके खून का कैंसर बताकर छुट्टी दे दी। अस्पताल में भी उस बाई को रखने की आवश्यकता महसूस नहीं की। वह देश (कच्छ) में सात माह की तीव्र वेदना के बाद मरण की शरण में गई।
नवकार महामंत्र के प्रभाव का मुझे एक दूसरा अनुभव भी हुआ है।
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