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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - की आशा नहीं लगती।"
इस विचार से हम कच्छ-कोडाय पू. गुरुवर्याजी के पास चले गए। पू. गुरुवर्याजी को विनति की कि, "मेरी वेदना की शांति के लिए श्री संघ को कहकर सवा लाख नवकार मंत्र का जाप करवाओ।" मेरी इस विनति को स्वीकार कर एक दिन पूरा श्री संघ जाप में बैठ गया। मेरी वेदना किसी से सहन नहीं होती थी। इस प्रकार लगभग आठ दिन व्यतीत हुए। वेदना तीव्र थी वह मंद पड़ गई। इस दौरान मेरे पतिदेव भी आ गये। हम मुंबई के लिए रवाना हो गये। किंतु नवकार मंत्र के प्रभाव से मेरे पति को रास्ते में एक आदमी मिल गया। उसने बातचीत में बताया कि, "मुंबई जाकर ऑपरेशन मत करवाना। किंतु मांडवी-भूज रोड़ पर दहीसरा गांव आता है। वहां एक वैद्य रहता है। वह पेट दर्द का बहुत अच्छा ईलाज करता है।" वगैरह बहुत भारपूर्वक कहा।
जिससे हमने सोचा कि, मुम्बई पहंचने से पहले बीच में दहीसरा गांव में वैद्य को बताते जाएं, इस आशय से टेक्सी वाले को कहा, "थोड़ी देर रुककर भी हमें दहीसरा ले चलो।" वहां वैद्य के पास जाकर जांच करवाई। वैद्य ने कहा कि,"कमली हो गई है। अब फुटने की तैयारी में है। मुश्किल से एक-दो दिन निकलेंगे और अंदर फुट गई तो खेल खत्म।" वैद्यजी को पूछने पर उन्होंने बताया कि, "हां मेरे पास उपाय है, किंतु डाम्ब का! डॉक्टरों का आखरी उपाय ऑपरेशन एवं वैद्य का अंतिम उपचार डाम्ब देने का!" हम बहुत सोच में पड़ गये। वैद्य को भारपूर्वक पूछने पर उसने बताया कि "हां! मेरे उपचार से यह बाई ठीक हो जायेगी
और इसके लिए मैं लिखित में कागज पर लिखकर देने के लिए तैयार हूँ।" साथ के संबंधियों (पतिदेव वगैरह) ने मुझे पूछा। मैंने कहा-"भले ही वैद्यजी से उपचार करावें। मुझे मुम्बई नहीं जाना है। घर जाकर मरूंगी तो नवकार मिलेगा। मुम्बई में तो पराधीन हो जायेंगे।" इस प्रकार हम डाम्ब दिलाकर मुम्बई के बजाय वापिस घर पर आये। वर्षा के कारण घर बड़ी मुश्किल से पहुंचे। कीचड़ में गाड़ी के पहिये फंस जाते और उनके ऊपर पानी आ जाता था। गांव में कच्चा रास्ता होने से बस या टेक्सी वहां नहीं
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