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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
मेरा ध्यान उस ओर गया। मैंने कहा, "हे भाई! इस सांप को मत मार । " वह सुनकर कुछ रुक गया और कहने लगा, " सांप तो मारने लायक है, किसी को काट जाएगा तो वह तत्काल मर जायेगा । "मैंने कहा, " अरे भाई ! ठहर ! इसे मत मार!" वह फिर रुक गया। मैंने नवकार मंत्र पढ़ा और एक वस्त्र उस सांप पर डालकर पकड़ लिया और उसे आगे ले गया। वह साईकिल वाला जोर से बोलकर कहने लगा, "बाबाजी, इस सांप को छोड़ दो, अन्यथा आप मर जाओगे।" मैंने उसकी बात पर अधिक ध्यान न देते हुए उस सांप को एक सूखे नाले में डाल दिया। वह मिट्टी की दराद में घुस गया। इस घटना से मेरी आत्मा को बहुत बल मिला और मैंने अपना इष्ट मंत्र नवकार मंत्र निश्चय किया ।
मैं जब गुरुदेव के साथ त्रिनगर दिल्ली के जैन स्थानक में चातुर्मास के लिए स्थित था, तब एक दिन प्रातः ही में गौचरी जा रहा था, तो कुछ नवयुवक अपने मकान की पुरानी छत की इंटें तथा मिट्टी उखाड़कर सड़क पर डाल रहे थे। उसमें एक छोटा सा सांप था। उसे देखकर वे सोच रहे थे कि, यह किसी को काट न खाये। दया के विचार से युक्त होने से उनको मारने की भावना नहीं थी, परन्तु आम रास्ता होने से कोई व्यक्ति सांप को मार सकता था। अतः उस सांप की रक्षा करने की भावना से मेरे दिल में दया उत्पन्न हुई और सर्वप्रथम नवकार मंत्र पढ़ा और उसे झोली में लिया और स्थानक के पास पार्क में छोड़ दिया और वह कहीं छिप गया।
एक दिन एक युवक को मैंने कहा कि, 'किसी भी समय घर से बाहर जाना हो तो सर्वप्रथम तीन बार नवकार महामंत्र श्रद्धा सहित पढ़कर फिर जाना।" उस युवक ने रात्रि में आकर बताया कि, "गुरुजी, मैं प्रातः 9 बजे घर से बाहर जाते समय 3 बार नवकार मंत्र पढ़कर मोटर साईकिल पर सवार होकर अपनी ड्यूटी के लिए बैंक पहुंचा, और वहां पर काम करके सांयकाल जब अपने घर की ओर लौट रहा था, तब मेरी मोटर साईकिल ऐसी जगह में फंस गई कि साईड में पुल की दीवार के
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