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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - झवेरी को पता न चले उस प्रकार श्रीमती झवेरी के हस्ताक्षर करवाना।"
मुझे उल्टियाँ बारबार होती थीं। कमर में कांटे चुभोए जा रहे हों, वैसी अकथ्य वेदना थी। अत्यंत असह्य रोग की पीड़ा हो रही थी।
श्राविका लगभग दस बजे छोटी दो पुत्रियों को मेरे पास बिठाकर मीठे-ठंडे शब्दों से आश्वासन देने लगी। मुझे कुछ सुझ नहीं रहा था, बेचैनी खूब थी। मैं जैसे-तैसे करवट बदलता था। श्राविका मस्तक के ऊपर हाथ फेरकर नवकार सुना रही थी। किंतु मुझे किसी भी प्रकार से चैन नहीं होता था।
में जैसे ही करवट बदलकर दूसरी ओर मुंह करके सोया, वैसे ही नर्स ने मौका देखकर गुलाबी रंग का कागज (जिसमें सारी जानकारी नर्स ने भर रखी थी, केवल श्रीमती झवेरी के हस्ताक्षर बाकी थे) दिया। इशारे से तुरंत हस्ताक्षर करने का सूचन किया। । श्राविका भी अवसर की नजाकतता देखकर फॉर्म पर हस्ताक्षर करने को तैयार हुई, उतने में दर्द की पीड़ा से बेचैन बने, मैंने करवट बदली और अचानक गुलाबी पर्ची पर मेरी पत्नी को हस्ताक्षर करते देखकर चौंक उठा।
"हें! बस! कोई आशा नहीं! मुझे कोई नहीं बचाएगा! यह फॉर्म तो केस फेल हो जाए तो अंत में शव की अंतिम क्रिया करने में कानूनी बाधा न आये उसके लिए है। इसी फॉर्म पर मैंने सैकड़ों हस्ताक्षर कराये, हाय! विधाता आज यही फार्म मेरे लिए !!!
बस! वास्तव में कोई मुझे बचा सके वैसा नहीं है !!! हे प्रभु! कहाँ मेरा वतन? कहाँ यह अनजान धरती! इस प्रकार मैं असहाय दुःखी बनकर आँखें मुंदकर आकाश की ओर देखता रहा। अत्यन्त आर्त हदय से पुकार रहा था कि- "हे अशरण शरणभूत! हे निराधारों के आधार! हे पतित पावन! अब मुझे तेरा ही सहारा है! कठिन कर्मों के भीषण उदय में सभी साथ छोड़ते हैं। किन्तु हे प्रभु! मैं तो तेरी शरण में हूँ। " ___अरिहंत...अरिहंत...शब्द हदय में गुंज उठे।
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