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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - का रास पढ़ता था। मैं ट्रक लेने मलाड़ गया। वहाँ डेढ़ बज गये। मुझे रास पढ़ने जल्दी पहुंचना था। मैंने मलाड़ से जोगेश्वरी आने के लिए रिक्शा किया। रिक्शे ने सम्राट टॉकीज के आगे रोड़ डिवाइडर से टक्कर खाई और वह उलट गया।
मैं और रिक्शाचालक दोनों नीचे दब गये। लगभग 400 लोगों की |भीड़ इकट्ठी हो गई। उन्होंने मुझे एवं रिक्शावाले को खींचकर जैसे-तैसे बाहर निकाला। मुझे सिर में मामूली चोट आयी थी, परन्तु रिक्शावाले का एक हाथ और एक पैर कट गया। उसका बहुत खून बह रहा था। रिक्शे के पीछे एक ट्रक वाला था, उसने मुझे कहा, 'सेठ! आपका नसीब |जोरदार है, कि मेरी अचानक ब्रेक लगी, नहीं तो आप दोनों खत्म हो जाते।" रिक्शा चालक की हालत गंभीर थी। उसे अस्पताल ले जाया गया
और मैं वापिस जोगेश्वरी आया। दो दिन तकलीफ रही, परन्तु बाद में मैं ठीक हो गया। रिक्शे में मेरा नवकार जाप चालु था। मुझे आयंबिल के तप और नवकार के जाप ने नया जीवन दिया।
एक बार हम तीस जने टिटवाला गये थे। वहां से वापिस आते सभी लोग तीन तांगो में जम गये। इस ओर रास्ता संकरा और एक नाला आता था। वहां लगभग 25 फीट की ऊंचाई थी। सामने से रिक्शा आ रहा था। रिक्शे के हॉर्न के कारण घोड़े भड़के और रास्ते के पास में मुड़े। हम तांगे सहित ऊपर से 25 फीट गहरी खाई में गिरे। परन्तु मेरी रोज की आदत के अनुसार घर से बाहर निकलने के बाद चलते-फिरते या कोई भी वाहन में बैठा हूँ, तब नवकार महामंत्र का रटन चालु ही रहता है, उसी प्रकार आज भी नवकार का स्मरण चालु ही था। परिणामस्वरूप जहां बचने की भी संभावना नहीं थी, वहां किसी को भी विशेष कुछ लगा नहीं गिरने के बाद मुझे पांच मिनट में होश आ गया। मैं तांगे में आगे ही बैठा था। तब मुझे वह पंक्ति याद आ गयी| "जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?'
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