Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
सब आपके पास नोट था । सबका प्रकाशन हो तो स्वयं में एक पूरा ग्रन्थ बन जाएगा । लब्धिसार- क्षपणासार की टीका आपने जयधवल मूल के आधार से लिखी है जिसका प्रकाशन अब हो चुका है। आयु के अन्त तक आप जीवकाण्ड की टीका लिखते रहे । यह कार्य मुख्तार सा० अपना बहुत समय देकर पूर्ण रुचिपूर्वक तल्लीनता से कर रहे थे, जिसका प्रकाशन भी शीघ्र होगा । यद्यपि उनकी शारीरिक शक्ति बहुत क्षीण हो गई थी, दृष्टि भी कमजोर
हो चली थी फिर भी दिन-रात सारा जीवन जिनवाणी माता की सेवा में ही लगाये रखते थे । अपने
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शरीर एवं स्वास्थ्य की जरा भी चिन्ता उन्होंने नहीं की । जो काम उन्होंने किया, उसकी प्रशंसा जितनी की जावे,
थोड़ी है ।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि पण्डित जवाहरलालजी भीण्डर वाले जो उनसे बहुत उपकृत हैं, मुख्तार स्मृति ग्रन्थ के प्रकाशन की तैयारी कर रहे । ऐसे महान् पुरुष का मंगल स्मरण ससम्मान अवश्य ही किया जाना चाहिये । स्वर्गीय मुख्तार सा० का मुझ पर भी बड़ा उपकार एवं अनुग्रह था । ऐसे सिद्धान्तमर्मज्ञ, सिद्धान्तवारिधि, सिद्धान्तभूषण, महापुरुष बाबू रतनचन्दजी मुख्तार सा० का मैं शतसहस्र अभिनन्दन करता हूँ और उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ । श्री १००८ वीर प्रभु से सादर सविनय यही करबद्ध प्रार्थना है कि यह महान् आत्मा यथा शीघ्र मोक्षलक्ष्मी का वरण कर शाश्वत सुख में लीन हो ।
स्मृति के दर्पण में
सिद्धान्तभूषण पण्डित श्री रतनचन्दजी मुख्तार
* विनोदकुमार जैन, सहारनपुर
जैन संस्कृति का इतिहास जिस प्रकार अनेक पुरातन मनीषियों, तपस्वियों तथा महान् आचार्यों की गौरवगाथाओं से आलोकित है उसीप्रकार जैन वाङमय के आधुनिक विशिष्ट अनेक मूर्धन्य विद्वानों एवं मर्मज्ञों की जीवनचर्या से प्रकाशित भी है। ऐसे आधुनिक विद्वानों में सिद्धान्तवेत्ता, विद्वत्ता की अनुपम विभूति पण्डित श्री रतनचन्दजी सा० मुख्तार का नाम भी चिरस्मरणीय रहेगा ।
लौकिक शिक्षा
आपका जन्म भारत देश की हृदयस्थली उत्तरप्रदेश प्रान्तस्थ सहारनपुर नगर में जुलाई सन् १९०२ में हुआ था । ८ वर्ष की अल्पायु में ही आपको अपने पिता श्री धवलकीर्तिजी के वियोग का दुःख सहना पड़ा। उस समय परिवार में आपकी माताजी, दो अग्रज, एक अनुज तथा एक बहिन कुल छह सदस्य थे। सभी परिजनों की जीवन यात्रा अब बड़े भ्राता श्री मेहरचन्दजी के संरक्षण में प्रारम्भ हुई । सन् १६२० में आपने मेट्रिक को परीक्षा उत्तीर्ण की । दिसम्बर सन् १९२३ में आपने 'मुख्तार' की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा सहारनपुर क्षेत्र के न्यायालय में ही कार्य करने लगे । पूज्य पिताजी के धार्मिक संस्कारों ने आपकी दैनन्दिन चर्या में जिनपूजन व जिनागम पठन पाठन के अमिट संस्कार प्रस्फुटित किए थे ।
मुख्तारी से निवृत्ति
न्यायालय में कार्य करते हुए आपने एक सफल मुख्तार के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की । उच्च प्रशिक्षित वैधानिक परामर्शदाता भी आपसे अनेक कानूनी विषयों पर परामर्श लिया करते थे । अपनी तर्कणाशक्ति व अध्ययन
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