Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ २७३ "सदस्स कोहो बोसो, माणो दोसो, माया दोसो लोहो दोसो। कोहो माणो माया णोपेज लोहो
सियापेज इस्स कोहो बोसो, माल
अर्थ-शब्दनय की क्रोध दोष ( द्वेष ) है, मान दोष है, माया दोष है और लोभ दोष है। क्रोध मान माया पेज्ज ( राग ) नहीं हैं किन्तु लोभ कथंचित राग है।
जब कि "सर्वगुणविनाशको लोभः ।" लोभ सर्वगुणों का विनाशक है तो लोभ कथंचित् राग कैसे हो सकता है । श्री वीरसेनाचार्य लोभ को कथंचित् पेज्ज ( राग ) होने का हेतु देते हैं__"लोहोसिया पेज वि, रयणत्तयसाहण-विसय लोहादो सग्गप्पवगाणमुप्पत्तिदंसणावो ।
अवसेस वत्थुविसयलोहो गोपेज्जं तत्तो पावप्पत्तिवंसणादो।" ज. ध. पु. १ पृ. ३६९ ।
अर्थ-रत्नत्रय के साधन विषयक लोभ से स्वर्ग और मोक्ष ( सुख ) की प्राप्ति देखी जाती है इसलिये लोभ कथंचित राग है तथा शेष पदार्थ विषयक लोभ पेज्ज नहीं है, क्योंकि उससे पाप की उत्पत्ति देखी जाती है।
-जं. ग. 15-6-72/VII/रो. ला. मि.
ज्ञान मार्गणा ( मतिज्ञान, श्रुतज्ञान )
मत्याविज्ञान केवलज्ञान के अंश हैं [ कथंचित् ] शंका-मतिज्ञान व अ तज्ञान इन दोनों की जाति एक है अथवा ये दोनों ज्ञान केवलज्ञान के अंशरूप हैं ? वास्तविकता क्या है?
समाधान-मतिज्ञान और श्रु तज्ञान ये दोनों ज्ञान परोक्ष हैं। कहा भी है-"आद्य परोक्षम् ॥१११॥" (तत्त्वार्य सूत्र ) "कुतोऽस्य परोक्षत्वम् ? पराधीनत्वात् । ( स. सि. १११)
प्रथम दो ज्ञान अर्थात् मतिज्ञान व श्रुतज्ञान परोक्षप्रमाण हैं, क्योंकि ये दोनों ज्ञान पराधीन हैं अतः ये परोक्ष हैं।
परोक्ष की अपेक्षा मतिज्ञान व श्रुतज्ञान इन दोनों की जाति एक है।
केवलज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान है, मति-श्रुत ज्ञान परोक्ष ज्ञान हैं। इस अपेक्षा इन की जाति एक नहीं है, तथापि अविभाग प्रतिच्छेद की अपेक्षा मति-श्रुतज्ञान केवलज्ञान ( पूर्णज्ञान ) के अंश हैं ।
___ "रजोजुषां ज्ञानदर्शने न मङ्गलीभूतकेवलज्ञानदर्शनयोरवयवाविति चेन्न, ताभ्यां व्यतिरिक्तयोस्तयोरसत्वात् । मत्यादयोऽपि सन्तीति चेन्न तस्वस्थाना मत्याविण्यपदेशात् ।" धवल १३७ ।
क्योंकि केवलज्ञान और केवलदर्शन से भिन्न ज्ञान और दर्शन का सद्भाव नहीं पाया जाता है, अतः आवरण से युक्त जीवों के जो ज्ञान और दर्शन हैं वे केवलज्ञान और केवलदर्शन के अवयव ( अंश ) हैं। यदि कहा जाय कि
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