Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
इससे स्पष्ट है कि असंयमी श्रावकों के द्वारा पूजनीय नहीं है । जब असंयमी पूजनीय नहीं है तो उसका फोटू जिन मन्दिर में क्यों लगाया जाय ?
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सूतक पातक विधान श्रागमानुसार होने से मान्य है।
शंका -- सूतक पातक मान्य हैं या नहीं ?
समाधान --- सूतक - पातक मान्य हैं। जिसके मृतक सूतक है वह मुनियों को आहार नहीं दे सकता है । मूलाचार पिंडशुद्धि अधिकार में दायक के दोषों का कथन करते हुए कहा गया है
"मृतकं, सूतकेन श्मशाने परिक्षिप्यागतो यः स मृतक इत्युच्यते ।"
जो मृतक को श्मशान में जलाकर आया है ऐसा मृतक सूतकवाला आहारदान देने योग्य नहीं है ।
सूतक करि जो अपवित्र है यदि ऐसा मनुष्य आहार दान करे है, कुमनुष्य विषै उपजै है । श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने त्रिलोकसार में कहा भी है
- जै. ग. 13-5-71 / VII / र. ला. जैन
इससे सिद्ध है कि जन्म व मरण का सूतक मान्य है ।
दुब्भाव असुचिसूदगपुरफवई जाइ संकरावीहि । कदाणा वि कुवत जीवा कुणरेसु जायंते ॥ ९२४ ॥
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गर्भस्राव व गर्भपात में लगने वाले सूतक की अवधि
शंका - गर्भपात १, २, ३, ४, ५, माह तक (में) स्त्री को सूतक कितने दिन का लगता है ? वह कब तक मन्दिर नहीं आयेगी ?
—जै. ग. 13-5-71 / VII / र. ला. जैन
समाधान-चार माह तक का गर्भस्राव कहलाता है और ५-६ माह का गर्भपात । जितने माह का स्राव और पात उतने ही दिन का सूतक ग्रन्थों में बताया गया है। अगर रजस्राव ज्यादा दिन तक जारी रहे तो तब तक प्रशोच रहता है, उसके बाद शुद्ध होने पर ही मन्दिर जाना चाहिये । इसके अलावा जहाँ जैसा रिवाज हो, वैसा करना चाहिए । देशकालादि के अनुसार इन विषयों में अनेक विभेद होते हैं इसीलिये कहा गया है कि-अनुक्तं यद् यत्रैव तज्ज्ञेयं लोकवर्तनातू अर्थात् जो इस विषय में नहीं बताया गया हो, उसे लोकव्यवहार से जानना चाहिए ।
- जै. सं. 21-11-57 /VI / प. ला. अम्बालावाले
नाइलोन की ऊन पहिनकर देव गुरु-शास्त्र का स्पर्श नहीं करना चाहिये शंका- नाईलोन की ऊन पहनकर शास्त्र का स्पर्श करना चाहिये या नहीं ?
समाधान – ऊन प्रायः केशों (बालों) की बनती है। केश (बाल) मल हैं, श्रशुद्ध हैं । अतः ऊनी वस्त्र
पहनकर देव गुरु शास्त्र का स्पर्श नहीं करना चाहिये । नाइलोन की ऊन में यदि बालों का प्रयोग होता हो तो उसके वस्त्र पहनकर भी शास्त्र का स्पर्श नहीं करना चाहिये । श्रार्ष ग्रन्थों में शुद्ध माना गया है, अन्य केशों को शुद्ध नहीं माना गया है ।
मात्र मयूर - पिच्छी को किसी सीमा तक
- जै. ग. 29-8-74 / VII / मगनमाला
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