Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ७६१
उपयुक्त हेतु क्रोधादि के साथ व्यभिचारी है ? उत्तर-नहीं. क्रोधादि जीव के परिणाम हैं इसलिये वे परतंत्रतारूप हैं, परतंत्र में कारण नहीं। प्रकट है कि जीव का क्रोधादि परिणाम स्वयं परतंत्रता है, परतंत्रता का कारण नहीं है । अतः उक्त हेतु क्रोधादि के साथ व्यभिचारी नहीं है ।
इस परतंत्रता से मुक्त होने पर अर्थात् स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने पर जीव सुखी हो सकता है। कहा भी है
"पारतन्त्पनिवृत्तिलक्षणस्य निर्वाणस्य शुद्धात्मतत्त्वोपलम्मरूपस्य" [पं० का० गा० २ टीका ]
अर्थात-परतंत्रता से छुटकारा है लक्षण जिसका, ऐसा निर्वाण वही शुद्धात्मतत्त्व की उपलब्धि है । और वही वास्तविक सुख है।
इसप्रकार प्रत्येक जीव का कर्तव्य है कि वह मोक्ष अर्थात् स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये मोक्षमार्ग को ग्रहण करे । मोक्ष के लिये निर्ग्रन्थ मुनिलिंग धारण करना आवश्यक है, क्योंकि वस्त्र का असंयम के साथ अविनाभावी संबंध है। श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने कहा भी है
ण वि सिज्झइ वत्थधरो जिणसासणे जइ बि होइ तित्ययरो।
णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सवे ॥ २३ ॥ [ सूत्र-प्राभूत ] अर्थात्-जिनशासन में वस्त्र धारण करनेवाले को मुक्ति नहीं होती। यद्यपि वह तीर्थकर ही क्यों न हो। नग्नता अर्थात् समस्त परिग्रहरहित अवस्था मोक्षमार्ग है। शेष प्रर्थात् वस्त्रादि परिग्रहसहित जो साधु हैं वे मिध्यामार्गी हैं।
पंचमहब्बयजुत्तो तिहि गुत्तिहि जो स संजदो होइ ।
णिग्गंथमोक्खमग्गो सो होदि वंदणिज्जो य ॥ २० ॥ [ सूत्र प्राभूत ] अर्थात्-जो पंचमहाव्रत व तीनगुप्ति करि संयुक्त है वह संयमवान है । बहुरि निग्रन्थ मोक्षमार्ग है सो ही प्रगटपणे करि वन्दने योग्य है।
"न तासां भावसंयमोऽस्ति भावासंयमाविनाभाविवस्त्राद्य पादानान्यथानुपपत्तेः।" [ धवल १ पृ० ३१३ ]
अर्थ-उनके भावसंयम नहीं है, क्योंकि भावअसंयम का अविनाभावी वस्त्र आदि का ग्रहण करना नहीं बन सकता।
अब विचारने की बात यह है कि जो स्वतंत्रता ( मोक्ष ) प्राप्त करने के लिये अपना कर्तव्य पालन कर रहा है वह दोषी है या वह दोषी है जो न तो स्वयं कर्तव्य का पालन करता है और दूसरों के लिये बाधक होता है।
एक सैनिक का पहले दिन विवाह हया और दूसरे दिन देश पर शत्रु का आक्रमण हो गया। वह सैनिक देश की रक्षा के लिये अपना कर्तव्य पालन करने को स्त्री तथा वृद्ध माता-पिता को छोड़कर युद्ध में जाता है, यदि स्त्री अपनी कामवासना आदि के कारण पति को रोकती है या उसके चले जाने पर व्यभिचारी हो जाती है तो दोषी कौन स्त्री या सैनिक ?
दूसरी दृष्टि इस प्रकार है
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