Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार ।
समाधान-मुनि किसी भी तेल की मालिश नहीं कराते । किन्तु औषधि रूप से श्रावक चन्दन आदि के तेल की मालिश द्वारा रोग की चिकित्सा कर सकता है।
--जं. सं. 27-11-58/V/पं बंशीधर नास्त्री धार्मिक कार्य के लिए कदाचित् मुनि रात्रि को बोल सकते हैं शंका-चातुर्मास स्थापना के समय पू० मनि महाराज एवं त्यागी वर्ग रात्रि के होते ही यानी संध्या समय के बाद बोलते हुए चातुर्मास स्थापन क्रिया करते हैं। क्या यह उचित है ? क्या रात्रि के समय बोलना भी आगमानुकूल है ? पू० मुनिराज किस-किस स्थिति में रात्रि के समय बोल सकते हैं ? समाधान-मुनिराज के निम्न २८ मूलगुण हैं
महावतानि पंचव परमसमितयः । पंचेन्द्रियनिरोधाश्च लोच आवश्यकानि षट् ॥४६॥ अचेलस्वं ततोऽस्नानम् धराशयन मेव हि । अदन्त-घर्षणरागदूरं च स्थिति-भोजनम् ॥४७॥ एकमुक्त समासेनामी सन्मूलगुणा बुधः।
विज्ञयाः कर्महन्तारः शिवशर्म गुणाकराः ॥४८॥ पाँच महाव्रत, पाँचसमिति, पंचेन्द्रिय विजय, षडावश्यक, लोच, अचेलत्व, अस्नान, भूमिशयन, अदंतधावन, स्थितिभोजन, एकमुक्ति । ये २८ मूलगुण कर्मों का नाश करने वाले हैं और मोक्षसुख करने वाले हैं। रात्रिमौन मनियों के २८ मूलगुणों में नहीं है । तथापि प्रत्येक मनुष्य को विशेष कर मुनि महाराज को तो कम से कम बोलना चाहिए। प्रति आवश्यकता होने पर हित, मित, प्रियवचनों का प्रयोग करना चाहिए। विशेष धार्मिक कार्यों के लिये मनिराज रात्रि में बोलते हैं। वैयावृत्ति के लिये समाधिमरण आदि के अवसर पर संबोधन के लिये मुनिराज बोलते हैं।
त्यागीगण तो श्रावक हैं। श्रावक तो रात्रि को बोलता ही है। श्रावक को रात्रि में मौन से रहना चाहिये ऐसा कथन आर्ष ग्रन्थ में देखने में नहीं आया। फिर भी विकल्पों को रोकने के लिये मौन बहत उत्तम है। प्रत्येक मनुष्य को मौन से रहने का अभ्यास करना चाहिये।
-जं. ग. 2-2-78/....... | श्री दि. जैन धर्मरक्षक मण्डल, फुलेरा मुनि होने पर पूर्व में त्यक्त रसों को ग्रहण करे या नहीं ? शंका-जिस जीव ने गृहस्थ अवस्था में जीवन भर का नमक त्याग कर दिया है फिर मुनि हो गया तो आहार में नमक मिल गया तो क्या वह नमक का आहार कर सकता है ?
समाधान-दीक्षा संस्कार होने पर मुनि द्विजन्मा हो जाता है अतः पूर्वजन्म समाप्त हो जाता है । अत: मुनि होने के पश्चात् यदि इस जीव ने नमक का पुन: त्याग नहीं किया तो वह नमक का आहार ले सकता है, किंत उत्तम यह है कि रसपरित्यागतप के लिये ऐसे जीव को मुनि होने के पश्चात् नमक का पुनः त्याग कर देना चाहिये। इस विषय में मुझको आगम प्रमाण नहीं मिला, यदि कहीं भूल हो तो ज्ञानीजन सुधार लेने की कृपा करें।
-प्. सं. 1 5-8-57/........ श्रीमती कपूरीदेवी
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