Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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समाधान-गर्मी के समय कोई व्यसि हवा करने लगे बिजली का पंखा, कूलर आदि लगा देवे या प्राकृतिक ठंडी वायु चलने लगे यदि मुनिराज उस में रति करते हैं, तो उनको दोष है। इसी प्रकार ठंड के समय कोई आग की अंगीठी रख देवे, हीटर लगा देवे या प्राकृतिक तेज धूप निकलकर गर्मी हो जावे, यदि मुनिराज उसमें रति करते हैं तो उनको दोष है। सर्दी या गर्मी में रति या परति करना मुनिराज के लिए दोष है। मुनिराज श्रावक को अनुचित क्रिया न करने का उपदेश दे सकते हैं, आदेश नहीं देते ।
-जन गजट/2-2-78/ /दि. जैन धर्म रक्षक मंडल, फुलेरा पुलाकमुनि रात्रि भोजन त्याग का विराधक कैसे होता है ? शंका-सर्वार्थसिद्धि अ. ९ सूत्र ४७ में प्रतिसेवना का कथन करते हुए लिखा है-'दूसरों के दबाववश जबरदस्ती से पांच मूलगुण और रात्रि भोजनवर्जनव्रत में किसी एक की प्रतिसेवना करने वाला पुलाक होता है।' इसका क्या अभिप्राय है ?
समाधान-तत्त्वार्थवृत्ति में श्री श्रुतसागरसूरि ने इस सम्बन्ध में निम्न प्रकार लिखा है-'महावतलक्षण पञ्चमूलगुणविभावरी-भोजनवर्जनानां मध्येऽन्यतमं बलात् परोपरोधात् प्रतिसेवमानः पुलाको विराधको भवति । रात्रिभोजनवर्जनस्य विराधकः कथम् इति चेत् ? उच्यतेश्रावकादीनामुपकारोऽनेन भविष्यतीति छात्रादिकं रात्री भोजयतीति विराधकः स्यात् ।'
पुलाक के पांच महाव्रतों अर्थात् पंच मूल गुण और रात्रि-भोजन-त्याग व्रत में विराधना होती है । बलात् से या दूसरों के उपरोध से किसी एक व्रत की प्रतिसेवना होती है। रात्रि-भोजन त्याग व्रत में विराधना कैसे होती है ? इसके द्वारा श्रावक प्रादि का उपकार होगा, ऐसा विचार कर पुलाक मुनि विद्यार्थी आदि को रात्रि आदि में भोजन कराकर रात्रि भोजनत्याग व्रत का विराधक होता है।
इस कथन से स्पष्ट है कि पुलाक मुनि अपनी इच्छा से पंचमहाव्रतों की विराधना नहीं करता है, किन्तु दूसरों की जबरदस्ती से तथा कष्ट पहुँचाये जाने पर मजबूर होकर विराधना करनी पड़ती है। रात्रिभोजनत्यागवत की विराधना में धर्मप्रचार व धर्मप्रभावना की दृष्टि रहती है, अर्थात् यदि यह विद्यार्थी रात्रि को औषधि आदि के सेवन करने से जीवित रह गया तो इसके द्वारा श्रावकों में धर्म का प्रचार होगा तथा इसके द्वारा धर्म की प्रभावना होगी आदि।
-जं. ग. 5-9-74/VI/ब. फूलचन्द महाव्रती साधु के रात्रि भोजन विरमण अणुव्रत शंका-तस्वार्थसूत्र अ०७ सूत्र १ की सर्वार्थसिद्धि टीका में 'ननु च षष्ठमणुव्रतं रात्रिभोजनविरमणं' ( अर्थात-रात्रिभोजनविरमण नामका साधुओं और धावकों के अणुव्रत होता है ) ऐसा लिखा है। तो महाव्रती साधु के 'अणुव्रत' कैसे?
समाधान-तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ७, सूत्र १ में महाव्रत या अणुव्रत का कथन नहीं है, किंतु व्रत सामान्य का कथन है। सूत्र २ में व्रत सामान्य के दो भेदों ( अणुव्रत और महाव्रत ) का कथन है। सूत्र ३ से ८ तक प्रत्येक व्रत की भावनाओं को बताया। सूत्र १ की टीका में 'ननु च 'से शंकाकार ने शंका उठाई है 'रात्रिभोजनविरमण नामका छठा अणुव्रत है उसकी भी यहां परिगणना करनी थी' अर्थात पांच व्रतों के अतिरिक्त 'रात्रिभोजनविरमण' नामका छठा अणुव्रत पाया जाता है। इस पर श्री पूज्यपाद आचार्य उत्तर देते हैं-'ऐसी शंका ठीक नहीं
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