Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
शरीर प्रबल रहने से इन्द्रियाँ प्रबल रहेंगी और वे विषयों की ओर दौड़ेगी, श्रतः शरीर को भी क्रमशः कृश करने का उपदेश है । किन्तु श्वासोच्छ्वास निरोध से शरीर कृश नहीं होता है, इसीलिये धवल पु. १ पृ. २५ पर कहा है कि संयम के विनाश के भय से श्वासोच्छ्वास का निरोध करके मरे हुए साधु के शरीर का त्यक्त के किसी भी भेद में अन्तर्भाव नहीं होता है, क्योंकि इसप्रकार से मृत शरीर को मंगलपना प्राप्त नहीं हो सकता है ।
- जै. ग. 14-10-65 / IX / शान्तिलाल
रोगी को मुनि दीक्षा
शंका- रोग अवस्था में क्या मुनि दीक्षा ली जा सकती है ?
समाधान - सल्लेखना के समय रोग अवस्था में भी मुनि दीक्षा ली जा सकती है। मुनि दीक्षा के समय केशलोंच प्रादि सब क्रिया आगम के अनुसार होनी चाहिए ।
- जै. ग. 5-12-63 / IX / पन्नालाल
मुनि की पहचान
शंका- यदि किसी सम्यग्दृष्टि को यह पता चल जाय कि अमुक मुनि मिथ्यादृष्टि है तो क्या उसे उन मुनि को नमस्कारादि करने चाहिए ? जब तक पता न चले तब तक उसका क्या कर्तव्य है ? ऐसे भी बहुत से मिथ्यादृष्टि मुनि होते हैं जो कि उपदेश कर सैंकड़ों का कल्याण कर देते हैं, उनके प्रति सम्यग्दृष्टि का क्या कर्तव्य है ?
समाधान- व्यवहार धर्म का साधन द्रव्यलिंगी मुनि के बहुत है श्रर भक्ति करनी सो भी व्यवहार है । तातें जैसे कोई धनवान होय, परन्तु जो कुल विषं बड़ा होय ताको कुल अपेक्षा बड़ा जान ताका सत्कार करे, तैसे प्राप सम्यक्त्व गुण सहित है, परन्तु जो व्यवहार धर्म विषै प्रधान होय, ताको व्यवहार धर्म अपेक्षा गुणाधिक मानि ताकी भक्ति करे हैं । ( मो० मा० प्र० आठवाँ अधिकार )
- जै. सं 17-5-56 / VI / मू. ध. मुजफ्फरनगर मूलगुणों की आवश्यकता
शंका- यदि कोई मुनि २८ मूलगुणों का ठीक प्रकार पालन नहीं करता तो सम्यग्दृष्टि को उसे नमस्कार करना चाहिये या नहीं ? यदि वह एक या दो मूलगुणों का बिल्कुल ही पालन नहीं करता तो फिर वह नमस्कार का पात्र है या नहीं ?
समाधान - जो मुनि के २८ मूलगुणों का ठीक-ठीक पालन नहीं करता अथवा एक या दो मूलगुणों की सर्वथा उपेक्षा कर देता है, वह मुनि ही नहीं है, पात्र नहीं है । द्रव्यलिंगी मुनि तो २८ मूलगुणों का यथार्थं रीति से पालन करते हैं निग्रन्थ गुरु व अहिंसामयी धर्म का सच्चा श्रद्धान भी है ।
अत: वह नमस्कार का और उनके अर्हन्तदेव,
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- जं. सं. 17-5-56 / VI / मू. थ. मुजफ्फरनगर
मुनिराजजी अंगीठी, हीटर या कूलर में रति न करे [ इनका उपयोग वर्ज्य है
शंका- पूज्य मुनिराजों को ठंड या गर्मी आदि में कोई व्यक्ति अंगीठी आदि जला दें या पंखा आदि से हवा करें तो इसमें मुनिराजों को दोष लगता है या नहीं ? क्या ऐसे कार्यों के लिये मुनिराजों को मना करना चाहिये ?
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