Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ७६३
श्री जयसेन आचार्य ने भी कहा है
"तत्वज्ञानी जीवस्तावत् अन्यस्मै परजीवाय सुखदुःखे दवामि, इति विकल्पं न करोति । यवा पुननिर्विकल्प समाधेरभावे सति प्रमादेन सुख-दुःखं करोमीति विकल्पो भवति तदा मनसि चितयति-अस्य जीवस्यांतरंगपुण्यपापोक्यो जातः अहं पुननिमित्तमात्रमेव, इति ज्ञात्वा मनसि हर्षविषादपरिणामेन गवं न करोति इति ।" [समयसार पृ. ३४६]
अर्थ-प्रथम तो तत्त्वज्ञानी जीव अन्य-परजीव को सुख-दुःख देने का विकल्प नहीं करता। यदि निर्विकल्पसमाधि के अभाव में प्रमादवश 'मैं सुखी, दुःखी करता हूं' ऐसा विकल्प हो भी जावे तब मन में यह चितवन करता है कि इस जीव के सुख-दुख का अंतरंगकारण पुण्य-पाप का उदय है मैं तो निमित्तमात्र हूं। इस प्रकार मन में विचार कर हर्ष विषाद या गर्व नहीं करता।
स्त्री पुत्र आदि का जीवनयापन कठिन हो जाना उन स्त्री पुत्र प्रादि के कर्मोदय पर निर्भर है, न कि अन्य व्यक्ति पर । यह भी एक अपेक्षा है।
यदि व्यक्ति बीमार (रोगी) हो जाय, वर्षों तक उसको आराम न हो, प्राय का अन्य कोई साधन है नहीं, रोगी की औषधि को भी धन चाहिये और स्त्री, पुत्र प्रादि के पालन-पोषण के लिये भी धन की प्रावश्यकता है। ऐसी स्थिति में स्त्री, पुत्र आदि का जीवन-यापन कठिन हो रहा है क्या वह रोगी व्यक्ति दोषी है ? यदि स्त्री अपनी कामवासना के कारण व्यभिचारी हो जाती है तो क्या वह रोगी व्यक्ति दोषी है?
-ज'. ग. 24-4-67/VII/ र. ला.जन, मेरठ द्रव्य संयम बन्ध का नहीं, मोक्ष का हेतु है शंका-द्रव्य संयम क्या बन्ध का कारण है ?
समाधान-द्रव्यसंयम बंध का कारण नहीं। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग बन्ध के कारण हैं।
"मिथ्यावर्शनाविरतिप्रमावकषाययोगा बन्धहेतवः ॥१॥" [त. सू. अ.८]
द्रव्यसंयम न मिथ्यात्वरूप है, न अविरतिरूप है, न प्रमादरूप है, न कषायरूप है, न योगरूप है अतः द्रव्यसंयम बन्ध का कारण नहीं है। द्रव्यसंयम अर्थात् जिनमुद्रा मोक्षसुख का कारण है । श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने कहा भी है
जिणमुद्दसिद्धिसुहं हवेइ णियमेण जिणवरुट्ठिा।
सिविणे वि ण रुच्चइ पुण जीव अच्छंति भवगहणे ॥४॥ जिनवर के द्वारा प्रतिपादित जिनमुद्रा सिद्ध-सुख अर्थात् मोक्ष की देने वाली है। जिसको जिनमुद्रा नहीं रुचती वह संसार में भ्रमण करता है । यह जिनमुद्रा द्रव्यसंयम अर्थात् द्रव्यलिंग भावलिंग का कारण है
"यलिंगमिवं ज्ञेयं भावलिंगस्य कारणं।" अष्टपाहड़ टीका
द्रष्यलिंग भावलिंग का कारण है । द्रव्यलिंग के बिना भावलिंग नहीं होता है ।
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