Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं. रतनचन्द जैन मुख्तार ! कथंचित् भावलिंगी भी मुक्ति हेतु अनन्त भव ले सकता है शंका-भावलिंगी मुनि तो ३२ भव लेकर मोक्ष जाते हैं जबकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव ३-४ भव में कैसे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ?
समाधान-भावलिंगी मुनि तो ३२ भव लेकर मोक्ष जाते हैं, यह बात ठीक नहीं है, क्योंकि एकबार भावलिंगी होने के पश्चात् अर्धपुद्गल परिवर्तन कालतक भी संसार में परिभ्रमण कर सकता है। कहा भी है
'उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्ट देसूणं ॥११॥' धवल पु. ५ पृ. १४
अर्थ-असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत इन चार गुणस्थानवालों का उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है।
भावलिंगी मुनि छठे, सातवेंगुणस्थान से च्युत होकर अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल तक, अर्थात् अनन्तभव धारणकर पुनः भावलिंगी मुनि होकर मोक्ष जाता है । मोक्ष जाने से पूर्व ३२ बार भावलिंगी मुनि हो सकता है इससे अधिक नहीं । कहा भी है
चत्तारि वारमुवसमसेढि समकहदि खविदकम्मंसो।
बत्तीसं वाराई संजममुवलहिय णिवादि ॥६१९॥ [गो० क०] इस गाया में श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य ने यह बतलाया है कि सकलसंयम को उत्कृष्टपने से ३२ बार धारण करता है, पीछे मोक्ष को प्राप्त होता है।
-ज.ग. 4-1-68/VII/ शां. कु. बड़जात्या
तप परीषह आदि से द्रव्यलिंग / भावलिंग नहीं पहिचाना जाता शंका-(क) जो मुनि शरीर पर डांस, मच्छर आदि जब-जब भी आवे तब-तब हमेशा उड़ाता रहता है अर्थात पूरे मुनि-जीवन में डांस मसक परीषह कभी नहीं जीत सका तो क्या उसके भी मावलिंग पूरे जीवनकाल तक रहा हो, यह सम्भव है ?
(ख) जिस मुनि ने कभी कायक्लेश तप नहीं किया हो तो क्या उसके भी मनिपना नष्ट नहीं होता?
(ग) पूरे जीवन काल में जिस मुनि ने २२ परीषहों में से एक भी परीषह कभी सहन नहीं किया हो अर्थात् कवाचित भी परीषहजय नहीं की हो, उसके भी क्या पूरे जीवन काल तक भावलिंग रहा हो, यह संभव है ?
(घ) जिस मुनि ने पूरे मुनिकाल में कभी १२ तपों में से एक भी तप नहीं किया हो तो क्या उसके पूरे जीवन तक मावलिंग रहा हो यह सम्भव है ?
समाधान-२२ परीषहों व १२ तपों से भावलिंग या द्रव्यलिंग नहीं पहचाना जाता। भावलिंगी या समलिगी की बाहर में कोई पहचान नहीं होती। अवधि या मनःपर्ययज्ञानी जान सकता है। बाह्य क्रियाएँ उच्चनोट की होते हुए भी यदि प्रत्याख्यानकषाय का उदय आ गया तो वह द्रव्यलिंगी साधू है। मनि शांतभाव से
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