Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
मात्र द्रव्यसंयम अर्थात् द्रव्यलिंग से मोक्ष नहीं होता। द्रव्यलिंग और भावलिंग दोनों से मोक्ष होता है। इन दोनों में से किसी एक से मोक्ष नहीं होता। ...
.. "द्वाभ्यां भावगलिंगाभ्या-कर्मप्रकृतिनिकरो नश्यति न स्वेकेन भावमात्रेण द्रव्यमानेण वा कर्मक्षयो भवति ।" अष्टपाहुड़ टोका
भावलिंग और द्रव्य लिंग इन दोनों से कर्मों का नाश होता है। एक से अर्थात् मात्र भावलिंग से या मात्र द्रष्यलिंग से कर्मों का क्षय नहीं होता है ।
जं. ग. 13-8-70/IX)........ ___द्रव्यलिङ्गो मुनि का स्वरूप शंका-द्रयलिंगी मुनि का स्वरूप क्या है ? कौन-कौन गुणस्थान वाले होते हैं ? आजकल बहुत लोगों का खयाल है कि वे पहले गुणस्थान वाले ही होते हैं अन्य गुणस्थान वाले नहीं होते और क्रिया से ही मोक्ष मानने वाले होते हैं।
- समाधान-मुनि का चारित्र दो प्रकार का होता है (१) द्रव्य चारित्र (२) भाव चारित्र । पांच महाव्रतों को तथा पांच समिति और तीन गुप्ति को अथवा अट्ठाईस मूल गुणों को निरतिचार पालन करना द्रव्यचारित्र है और यह द्रव्यचारित्र भावचारित्र का सहकारी कारण है जैसा कि स्वरूप सम्बोधन श्लोक १५ में श्रीमदभद्राकलंकदेव ने कहा है
तवेतन्मूलहेतोः स्यात्कारणं सहकारकम् ।
यद्वाह्य देशकालादिः, तपश्च बहिरङ्गकम् ॥ अर्थ-पहले ११-१४ श्लोक में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र को मोक्ष प्राप्ति का मूल कारण बताया है, उनके सहकारी कारण देशकालादि को, अनशन अवमौदर्य आदि तप को समझना चाहिए ।
मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीकषाय, अप्रत्याख्यानावरणकषाय प्रत्याख्यानावरणकषाय के उदयाभाव में आत्मा के जो विशद्ध परिणाम होते हैं, उसको भावसंयम कहते हैं । जिसके भावसंयमसहित, द्रव्यचारित्र होता है उसको भावलिंगी मनि कहते हैं। जिसके द्रव्यसंयम तो है, किंतु प्रत्याख्यानावरणकषाय के उदय के कारण उसके भाव सकलसंयम न होने से देशसंयम रूप भाव हो जाने के कारण वह मुनि यद्यपि सम्यग्दृष्टि है, द्रव्यलिङ्गी मूनि है, क्योंकि उसके भाव मुनिसंयम (भाव सकलचारित्र) का अभाव है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण व प्रत्याख्यानावरण कषायों के उदय में भावसंयम का प्रभाव होने के कारण वह सम्यग्दृष्टि मुनि द्रव्यलिङ्गी होता है। मिथ्यात्व व अनन्तानबन्धीकषाय का उदय होने से सम्यग्दर्शन भी नहीं होता प्रतः ऐसे द्रव्यसंयम को पालन करने वाला मुनि, मिथ्याष्टि द्रव्यलिंगी मुनि होता है।
___ स्थूलदष्टि से यह कहा जाता है कि द्रव्यलिङ्गीमुनि क्रिया से मोक्ष मानने वाले होते हैं, किन्तु आत्मपरिणामों की तरतमता का काल इतना सूक्ष्म है कि मति-श्रुत ज्ञानी स्वयं अपने सूक्ष्म भावों को नहीं जान सकता, दुसरे जीवों के सूक्ष्म भावों को जानने की बात तो दूर रही। कहा भी है--
सम्यक्त्वं वस्तुतः सूक्ष्म, केवलज्ञानगोचरम् । गोचरं स्वावधि स्वान्तः, पर्ययःज्ञानयो योः ॥३७॥ न गोचरं मतिज्ञान-श्र तज्ञान द्वयोर्मनाक् । नापिवेशावधेस्तत्र, विषयानुपलब्धितः ॥३७६॥
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