Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ७०३
गाथार्थ - साधु के सावधानी पूर्वक की जाने वाली कायचेष्टा (अशन, शयन, स्थान, विहार आदि क्रिया ) द्वारा यदि छेद ( प्राणीघात ) होता है तो उस साधु को आलोचना पूर्वक क्रिया करना चाहिये ।
टीकार्थ-यदि भलीभाँति उपयुक्त श्रमरण ( साधु ) के प्रयत्नपूर्वक कायचेष्टा में ( उठने बैठने, चलने, भोजन आदि में ) कथंचित् संयम का बहिरंग छेद ( जीव घात ) होता है, तो वह सर्वथा अन्तरंग छेद ( भावहिंसा ) से रहित है, इसलिए आलोचना पूर्वक क्रिया से ही उस बहिरंगछेद ( द्रव्यहिंसा ) का प्रतिकार होता है ।
जे तसकाया जीवा पुम्वुद्दिट्ठा ण हिंसियव्वा ते ।
एइंदिया विणिक्कारखेण पढमं वयं वृलं ॥ २०९॥ वसु श्राव.
जो सजीव पहले बतलाये गये हैं, उन्हें नहीं मारना चाहिए और निष्कारण ( बिना प्रयोजन ) एकेन्द्रिय जीवों को भी नहीं मारना चाहिए। यह पहला स्थूल अहिंसाणुव्रत है ।
संकल्पात्कृतकारितमननाद्योगत्रयस्यचरसत्त्वान् ।
न हिनस्ति यत्तदाहुः स्थूलवधाद्विरमणं निपुणाः ॥५३॥ रत्न. भाव.
मन, वचन, काय तीनों योगों के द्वारा कृत, कारित, अनुमोदना से सजीवों को सङ्कल्प से नहीं मारना हिंसा अणुव्रत है ।
इस प्रकार आर्ष ग्रन्थों में द्रव्यहिंसा के त्याग को अहिंसा व्रत कहा गया है ।
- जै. ग. 2-11-72 / VII / रोशनलाल होटल के भोजन, तथा पार्टी आदि से दूर ही रहना चाहिए
शंका-यदि धर्म का आचरण करते समय परिस्थिति से कुछ त्रुटियाँ उपस्थित हुई तो क्या करना चाहिये, जैसे प्रवास में होटल का भोजन या पानी पीना, पार्टी में या दावत में अजैनों के साथ भोजन करना ।
समाधान - यदि होटल आदि में तथा पार्टी आदि में भोजन करने का त्याग है तो अपने नियम को तोड़ना नहीं चाहिये | अज्ञानता या प्रमाद के कारण नियम में कोई दोष लग गया हो तो उसको प्रायश्चित्त द्वारा शुद्ध कर लेना चाहिये । यदि नियम नहीं है तो भी होटल आदि में भोजन करना उचित नहीं है । अशुद्ध भोजन से मन अपवित्र रहता है । कहा भी है 'जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन।' प्रवास में भोजन साथ लेजाया जा सकता है । फलाहार व मेवा ( Dry fruits ) खाकर दो चार दिन रहा जा सकता है। भुने हुए चने श्रादि का भी उपयोग किया जा सकता है । पार्टी या दावत से बचना चाहिए यदि ऐसा प्रसंग ना ही जावे तो वहाँ पर भी फल व मेवा ही लेने चाहिए, छन्ना अपने साथ रखें, जिससे छान कर पानी पी लिया जावे ।
-जै. सं. 10-4-58 / VI / 3. च. देवराज, दोउल आहार पानी की अनुपसेव्यता
शंका- यदि छना हुआ शुद्ध पानी, शुद्ध आचरणवाला कोई हरिजन भाई या ब्राह्मण भाई देवे तो धर्म के नाते ग्रहण करना उचित है या नहीं ?
Jain Education International
समाधान-शुद्ध आचरण वाला ब्राह्मण यदि छना हुआ शुद्ध पानी दे तो ग्रहण करने में कोई दोष नहीं है । शूद्र के संबंध में दि० जैन आगम की आज्ञा पालना उचित । निम्न बातें भी विचारणीय हैं । ( १ ) गऊ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org