Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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सातवी प्रतिमा ब्रह्मचर्य प्रतिमा है अतः सातवी प्रतिमा से ब्रह्मचारी संज्ञा है। निचली प्रतिमा वालों को भी जिन्होंने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर लिया है और गृह निरत हैं उनको भी उपचार से ब्रह्मचारी कहते हैं ।
-जं. ग. 27-6-63/IX-X/ मो. ला. सेठी राज्यसंचालन के योग्य प्रतिमा शंका-देशवती श्रावक राज्य संचालन करते हुए कौनसी प्रतिमा तक के व्रतों का पालन कर सकता है ?
समाधान-देशव्रती श्रावक राज्य-संचालन करते हए सप्तम प्रतिमा के व्रतों का पालन कर सकता है, क्योंकि अष्टम प्रतिमा में आरम्भ का त्याग हो जाने से राज्य-संचालन का कार्य नहीं कर सकता। कहा भी है
सेवाकृषिवाणिज्यप्रमुखादारम्मतो ध्युपारमिति ।
प्राणातिपातहेतोर्योऽसावारम्भविनिवृत्तः ॥१४४॥ ( रत्न. श्राव. ) अर्थात-जो जीव हिंसा के कारण नौकरी, खेती, व्यापार, आदिक प्रारम्भ के कामों से विरक्त होता है
-प्रतिमा का थारी कहलाता है। राज्य संचालन करते हुए जीव-हिंसा के कारण-भूत प्रारम्भ आदि का त्याग नहीं हो सकता, अत: सप्तमप्रतिमा तक के व्रत पालन कर सकता है ।
-जें.ग. 14-5-64/IX/5 पं0 सरदारमल
पाठवी प्रतिमा शंका-अष्टम प्रतिमाधारी अपने कपड़े धो सकता है या नहीं ? पूजन सामग्री धोने के लिए कुए से जल निकाल सकता है अथवा नहीं?
समाधान-अष्टमप्रतिमाघारी श्रावक अर्थात् आरम्भत्यागी श्रावक शुद्धि के पश्चात अपना लंगोट आदि निचोड़ कर सुखा सकता है, किन्तु सोड़ा, साबुन लगाकर कपड़े नहीं धो सकता, क्योंकि इसमें जीवों की विराधना होती है। उस विवेकी ने षटकायिक जीवों का घात देखकर ही तो आरम्भ का त्याग किया है अतः व Haram पूजाविधानादि का आरम्भ नहीं करता । ( रत्नकरण्डश्रावकाचार श्लोक १४४ पर संस्कृत टीका)
-जं.ग. 11-1-62/VIII/ नवम प्रतिमाधारी कदाचित् सवारी में बैठ सकता है शंका-नवमी अथवा दसवी प्रतिमाधारी श्रावक रेल, मोटर में बैठ सकता है या नहीं, अथवा पंचकल्याणक-प्रतिष्ठा करा सकता है या नहीं ?
समाधान-नवमों तथा दसवीं प्रतिमा का स्वरूप निम्न प्रकार कहा गया है
जो आरंभ ण कुणदि, अण्णं कारयदि व अगुमण्णे। हिसा संत मणो, चत्तारंभो हवे सो ह ॥३८॥ जो परिवज्जइ गंथं, अभंतर-वाहिरं च साणंदो। पावं ति मण्णमाणो, णिग्गंधो सो हवे णाणी ॥३८६॥ स्वामि कार्तिकेय अ० सेवाकृषिवाणिज्य, प्रमुखादारम्भतो व्युपारमति । प्राणातिपातहेतोर्योऽसावारम्भ विनिवृत्तः ॥२३॥
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