Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ७२१
समाधान-ज्ञान की विशेष पर्याय का नाम ध्यान है । कहा भी है"चिन्तायाः ज्ञानात्मिकायाः, वृत्तिविशेष ध्यानशब्दो वर्तते ।" रा. वा. ९/२७/१३ "ज्ञानवापरिस्पन्दाग्नि शिखावदवभासमानं ध्यानमिति ।" सर्वार्थसिद्धि ९/२७
छद्मस्थ का ज्ञान क्षायोपशमिकभाव है अतः ध्यान भी क्षायोपशमिकभाव है, क्योंकि निश्चल अग्निशिखा के समान निश्चलरूप से अवभासमान ज्ञान ही ध्यान है। प्रार्तध्यान भी ज्ञान की पर्याय विशेष है अतः प्रार्तध्यान भी क्षायोपशमिकभाव है।
-ज'. ग. 10-8-72/X/र. ला. जन, मेरठ
प्रात, रौद्र ध्यान शंका-आतं, रौद्र ध्यान तीन अशुभलेश्या याने कृष्ण, नील, कापोत में ही उत्पन्न होना बताया लेकिन रौद्र ध्यान पांचवें गुणस्थान तक, आर्तध्यान छठे तक ( निदान छोड़कर ) होना बताया है तो वहाँ पर तो अशुभ लेश्या होती नहीं, सो कैसे बने ?
समाधान-यह कोई नियम नहीं है कि आर्त और रौद्रध्यान अशुभ लेश्याओं में ही होते हों, शुभ लेश्याओं में भी हो जाते हैं। किन्तु अधिकतर अशुभ लेश्या में होते हैं अतः आत्तं और रौद्रध्यान अशुभ लेश्या में होते हैं ऐसा कह दिया जाता है।
-पत्राचार 29-5-54/ब. प्र. स. पटना शंका-आतं रौद्रध्यान एकेन्द्रिय से लेकर असंजी पंचेन्द्रिय तक के होता है क्या ? मन के बिना स्मृतिसमन्वाहार कैसे सम्भव है ?
समाधान-असंज्ञीजीवों के मति व श्रुत दोनों प्रकार के ज्ञान होते हैं । स्मृति भी मतिज्ञान है ऐसा सूत्र है-मतिस्मृतिसंज्ञाचिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् । मो० शा० १/१३ । जब एकेन्द्रिय जीव के स्मृति ज्ञान हो सकता है तो रोद्रध्यान होने में क्या बाधा है ? एकेन्द्रिय जीव के धर्म व शुक्लध्यान नहीं होता। अत: आर्त व रौद्रध्यान होता है।
-जै. सं. 9-8-56/VI) क. दे. गया आर्त रौद्र ध्यान तप नहीं हैं, हीन संहनन वाले के शुक्लध्यान नहीं होता शंका- ध्यान नामक तप के चार भेद किये । आर्त और रौद्र भी तप हुए ? तप नहीं है तो इन्हें तप के भेदों में क्यों कहा? ये दोनों हीन संहननवालों के भी हो सकते हैं क्या ?
समाधान-तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ९ सूत्र ३ में तप के द्वारा कर्मों को अविपाक निर्जरा व संवर बतलाया है। उस तप के ६ बहिरंगतप और ६ अन्तरंगतप ऐसे १२ भेद किये हैं। ध्यान को अन्तरंग तप कहा है। यहां पर संवर, निर्जरा तत्त्व का प्रकरण है अतः ध्यान से धर्मध्यान व शुक्लध्यान को ही ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि ये ही संवर-निर्जरा के कारण होने से मोक्ष के कारण हैं, जैसा 'परे मोक्षहेतू' सूत्र में कहा है। आर्त और रौद्र
ध्यान होने से संसार के कारण हैं अतः उनके त्याग हेतु उनका भी ध्यान के प्रकरण में कथन दिया गया है। आतं व रौद्र ध्यान सुतप नहीं हैं, कुतप हो सकते हैं । शुक्लध्यान के अतिरिक्त अन्य तीन ध्यान हीन संहननवालों के भी
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