Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
ध्यान
मिथ्यात्वी के निविकल्प ध्यान का प्रभाव शंका-क्या सातिशय मिथ्यादृष्टि के निर्विकल्पध्यान होता है ?
समाधान-सातिशयमिथ्याडष्टि के धर्म तथा शुक्लध्यान नहीं होता है, उसके तत्त्वाभ्यास होता है। अतः सातिशयमिथ्याडष्टि के निर्विकल्पध्यान नहीं होता है। धर्म व शुक्लध्यान सम्यग्दृष्टि के होते हैं, मिथ्यादृष्टि के नहीं होते हैं।
--जै. ग. 4-1-68/VII/ Pा. कु. बड़जात्या प्रतिसमय कोई एक ध्यान होने का नियम नहीं शंका-क्या संसारी जीव के हरसमय कोई एक ध्यान रहता है ?
समाधान-ध्यान का लक्षण 'एकाग्र चिन्ता निरोध' है जो किसी भी जीव के हरसमय नहीं रहता। अधिकतर भावना रहती है।
एकं प्रधानमित्याहु रप्रमालम्बनं मुख्यम् । चिन्ता स्मृतिनिरोधस्तु तस्यास्तत्रैव वर्तनम् ॥५॥ द्रव्य-पर्याययोर्मध्ये प्राधान्येन यदर्पितम् ।
तत्र चिन्ता-निरोधो यस्तद्ध्यानं वभजिनाः ॥५॥ अर्थ-'एक' प्रधान को और 'अन' आलम्बन को तथा मुख को कहते हैं । 'चिन्ता' स्मृति का नाम है और 'निरोध' उस चिन्ता का उसी एकाग्र विषयमें वर्तन का नाम है । द्रव्य और पर्याय के मध्य में प्रधानता से जिसे विवक्षित किया जाय उसमें चिन्ता का जो निरोध है, उसको सर्वज्ञ भगवन्तों ने ध्यान कहा है।
संसारी जीव के कोई एक ध्यान हरसमय रहता हो ऐसा नियम नहीं है।
__-. ग. 23-9-65/IX/ ब्र. पन्नालाल मिथ्यात्वी के देवायु का बन्ध कैसे ? शंका-मिथ्यादृष्टि के धर्मध्यान तो होता नहीं । हरसमय आतं या रौद्रध्यान रहता है जिनसे पाप बंध होता है। फिर वह नवनवेयक तक कैसे जा सकता है ?
समाधान-मिथ्याष्टि के हरसमय ध्यान रहता हो, ऐसा नियम नहीं है। मिथ्याडष्टि के मंदकषाय के उदय से परिणामों में विशुद्धता आ जाती है। जिससे ३१ सागर की देवायु का बंध हो जाता है। इसप्रकार मिथ्यादृष्टि नवप्रैवेयक में उत्पन्न होता है।
-जें. ग. 26-6-67/IX/र. ला. जैन मार्तध्यान क्षायोपशमिक भाव है शंका-आर्तध्यान को क्षायोपशमिकभाव कहा सो कैसे ?
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