Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ७३३ (करणानुयोग विषयक) गणित के सवाल में निरपेक्ष भाव से लगना धर्मध्यान है
शंका-एक आवमी किसी गणित के प्रश्न में निरपेक्ष भाव से लगा हुआ है, क्या इसको धर्मध्यान माना जावे?
समाधान-यदि वह जीव सम्यग्दृष्टि है और मात्र उपयोग को एकाग्र करने की दृष्टि से, रागद्वेष के बिना किसी गणित के प्रश्न के अवलम्बन से एकाग्रचित्त होता है तो वह धर्मध्यान है, क्योंकि गणितशास्त्र भी तो द्वादशांग का भाग है। श्री तत्त्वानुशासन में भी कहा है
स्वाध्यायः परमस्तावज्जपः पंचनमस्कृतेः । पठनं वा जिनेन्द्रोक्तशास्त्रस्यकान - चेतसा ॥८॥ स्वाध्यायाद् ध्यानमध्यास्तां ध्यानात्स्वाध्यायमाऽऽमनेत् । ध्यान-स्वाध्याय सम्पत्या परमात्मा प्रकाशते ॥१॥
अर्थात्-पंचनमस्कृतिरूप णमोकार मंत्र का जो चित्त की एकाग्रता के साथ जपना है वह परमस्वाध्याय है अथवा जिनेन्द्र कथित शास्त्र का जो एकाग्रचित्त से पढ़ना है वह स्वाध्याय है। स्वाध्याय से ध्यान को अभ्यास में लावे और ध्यान से स्वाध्याय को चरितार्थ करे। ध्यान और स्वाध्याय दोनों की सम्पत्ति से परमात्मा प्रकाशित होता है-स्वानुभव में लाया जाता है।
-जं. ग. 16-2-65/VIII/ बू. पन्नालाल अपायविचय व उपाय विचय धर्मध्यान में भेद शंका-स्वामि कार्तिकेयानुप्रेक्षा पृ० ३६७.३६८ पर धर्मध्यान के बस भेद कहे हैं। पहला अपायविचय, दूसरा उपायविचय है । इन दोनों में कोई अन्तर दिखाई नहीं पड़ता ?
समाधान-'अपाय' का अर्थ 'सर्वनाश' है। 'विचय' का अर्थ खोज करना या विचार करना। अर्थात् कर्मरूपी शत्र के नाश का विचार करना 'अपायविचय' धर्मध्यान है। 'उपाय' का अर्थ 'साधन' है। मोक्ष के साधनों का विचार करना 'उपायविचय' धर्मध्यान है।
-जं. ग. 11-7-66/IX| कस्तूरचन्द पिण्डस्थ व पदस्थ ध्यान
शंका-पिण्डस्थ व पदस्थध्यान धर्मध्यान हैं या शुक्लध्यान हैं ?
समाधान-पिण्डस्थ व पदस्थध्यान धर्मध्यान हैं शुक्लध्यान नहीं हैं। मुनि के मुख्यरूप से होते हैं। इन ध्यानों का विशेष कथन ज्ञानार्णव प्रन्थ से अथवा स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा ४८२ की संस्कृत टीका से जानना चाहिए।
-जं. ग. 21-11-63/X/ ब्र. पन्नालाल जैन गृहस्थी के निरन्तर धर्मध्यान प्रायः नहीं रह सकता शंका-क्या सम्यग्दृष्टि श्रावक के चौबीस घन्टे मुख्यता से धर्मध्यान बना रहता है ? जैसा कि वर्ष १० अंक ५ के सन्मति संदेश पृ० ६१ पर लिखा है।
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