Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
६५६ ]
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
इससे स्पष्ट है कि दान का फल केवल पुण्यबंध नहीं है, किन्तु मोक्ष का कारण भी है।
-जें. ग. 24-1-63/VII/ मोहनलाल दान-दाता-पात्र एवं द्रव्य-भावलिंग शंका-पात्र-कुपात्र-अपात्र की पहचान चरणानुयोग से होती है या करणानुयोग से ? 'रत्नकरण्ड श्रावका चार' में तो पात्र का लक्षण उत्तम तीर्थङ्कर, मुनि आदि; मध्यम-व्रती श्रावक आदि; जघन्य-अवती कुपात्र
यलिंगी मुनि, इनके अलावा सब अपात्र कहे गए हैं । सो व्यलिंगी या भावलिंगी तो हमारे अनुभवगम्य नहीं है फिर चरणानुयोग से या आचरण से पात्र का अनुमान कैसे लगावें ? दानादि का क्या क्रम है सो भी लिखें।
समाधान-विधि, द्रव्य, दाता और पात्र की विशेषता से दान के फल में विशेषता आती है। भले ही हमें पात्र की विशेषता ज्ञात न हो, किन्तु पात्र की विशेषता से दान के फल में विशेषता आती है जैसे ऋद्विधारी को प्राहार देने से आहार की सामग्री या क्षेत्र अटूट हो जाता है, भले ही दातार या पात्र को भी उस ऋद्धि का ज्ञान न हो परन्तु फल तो हो ही जाता है। इसीप्रकार किसी मुनि के विषय में यह ज्ञान न हो कि वह भावलिंगी है या द्रव्यलिंगी है, किन्तु फल पर तो उस मुनि के लिंगानुसार प्रभाव पड़ेगा। द्रलिंग या भावलिंग की पहचान मति-श्रुतज्ञान के द्वारा होना कठिन है ( क्योंकि अपने ही सम्यक्त्व या मिथ्यात्वभाव का ज्ञान होना कठिन है।) एक मुनि उपशान्तमोह होकर गिरा, मिथ्यादृष्टि हो गया, पुनः सर्वलघु काल से सम्यग्दृष्टि हो गया। उस मुनि को स्वयं यह पता नहीं चलता कि कब वह मिथ्यादृष्टि हुआ था और कब वह पुनः सम्यग्दृष्टि हो गया। परिणामों के परिवर्तन की इतनी सूक्ष्मता है और इतना जघन्यकाल है कि उसका ठीक-ठीक ज्ञान मति-श्रुतज्ञान के द्वारा होना कठिन है। निमित्त का भी प्रभाव देखो कि द्रव्य और पात्र की विशेषता से दान के फल में विशेषता हो जाती है । यह सब कुछ आगम में स्पष्ट लिखा हुआ है।
–णे. स. 10-5-56/VI/ क. दे. गया मुनिराजों को पड़गाहते समय त्रिप्रदक्षिणा उचित है शंका-पू० मुनिराजों को पड़गाहते समय त्रिप्रदक्षिणा देने का विधान कौन से प्राचीन शास्त्र में है ?
समाधान-यद्यपि-प्रतिग्रह के समय त्रिप्रदक्षिणा का विधान शास्त्रों में देखने में नहीं आया' तथापि यह किया परम्परा से चली आ रही है और यह आगम विरुद्ध भी नहीं है। शास्त्रों में प्रत्येक क्रिया का सविस्तार कथन हो ऐसा नियम भी नहीं है।
-जे. ग. 16-12-71/VII/ आदिराण अण्णा, गौडर पाहार के पश्चात् मुनि का शरीर किसी शुद्ध कपड़े से पोंछना अनुचित नहीं शंका-मुनि स्त्रियों या पुरुषों से गमछों से शरीर को पुछवा सकता है या नहीं ?
समाधान-गमछों से शरीर को पुछवाने की इच्छा मुनि महाराज को नहीं होती है। आहार के समय मुनि-महाराज के शरीर पर दूध प्रादि के छींटे पड़ जाते हैं । यदि उनको पोंछा न जावे तो चींटी मक्खी आदि की
१. देखो वसु० श्रा0 228-234: म0 पु0 2018-८७: पु० सि0 30 १६८ पा0 सा0 2813; गुण
श्रा० १५१ आदि।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org