Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार । असंयमी को नाहीं बंदिये, बहुरि भाव संयम नहीं होय अर बाह्य वस्त्र रहित होय सो भी बंदिवे योग्य नाहीं, जाते ये दोनों ही संयम रहित समान है । इन में एक भी संयमी नाहीं।
जिस मुनि की सब बाह्य क्रिया व भेष आचार शास्त्र के अनुकूल हों किन्तु भाव संयम न हो वह द्रव्यलिंग मुनि है।
-जं. ग. 2-5-63/IX/ श्रीमती मगनमाला जिनवाणी-श्रवण के विषय को स्त्री विषय तुल्य कहना महामिथ्यात्व है
शंका-द्रव्यदृष्टि प्रकाश भाग ३ बोल नं. १०१ पृष्ठ २३ पर लिखा है-"भगवान को वाणी सुनने में अपना ( सुनने के लक्ष में ) नाश होता है । जैसा स्त्री का विषय है, वैसे यह भी विषय है । पर लक्षी सभी भावों का विषय भाव समान ही है, क्योंकि परमार्थ पर लक्ष होने में आत्मा का गुण का घात भी होता है ।" क्या ऐसा उपदेश व लिखना आगमानुकूल है ? समाधान-श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने भगवान की वाणी के विषय में निम्न तीन विशेषण दिये हैं ।
"तिहुअणहिद मधुर, विसदवक्काणं ।" श्री अभृतचन्द्राचार्य ने टीका में कहा है-"त्रिभुवनमूर्ध्वाधोमध्यलोकवर्ती समस्त एव जीवलोकस्तस्मै निाबाध विशुद्धात्मतत्वोपलम्भोपायाभिधायित्वाद्धितं, परमार्थरसिक जनमनोहारित्वान्मधुरं, निरस्तसमस्तशंकादि दोषास्पदत्वाद्विशदं वाक्यं दिव्यो ध्वनिः।"
जिनवाणी अर्थात् दिव्यध्वनि तीनलोक को ऊर्ध्व अधो-मध्यलोकवर्ती समस्त जीव समूह को निर्बाध विशुद्ध आत्म तत्त्व को उपलब्धि का उपाय कहने वाली होने से हितकर है, परमार्थ रसिक जनों के मन को हरनेवाली होने से मधर है. समस्त शंकादि दोषों के स्थान दूर कर देने से विशद है।
श्री कुलभद्राचार्य ने स्त्री के निम्न तीन विशेषण दिये हैं
संसारस्य च बीजानि, दुःखानां राशयः पराः।
पापस्य च निधानानि, निर्मिताः केन योषिताः ॥ १२१॥ स्त्रियां संसार को उत्पन्न करने के लिए बीज के समान हैं, दुःखों की भरी हुई गंभीर खान के समान हैं, पापरूपी मैल के भंडार के समान है।
___ इन आर्षवाक्यों से स्पष्ट हो जाता है कि भगवान की वाणी सुनने का विषय और स्त्री का विषय दोनों समान नहीं हैं । इन दोनों विषयों में महान् अंतर है, जिनवाणी हितकर है, मोक्ष का कारण है। स्त्री अहितकर है और संसार का कारण है। इस प्रकार जिनवाणी सुनने के विषय से स्त्री का विषय विपरीत है वर्तमान में जिनवाणी शास्त्रों में निबद्ध है। अतः शास्त्र के विषय में इस प्रकार कहा गया है
यथोदकेन वस्त्रस्य, मलिनस्य विशोधनम् । रागादि दोष-दुष्टस्य, शास्त्रेण मनसस्तथा ॥७॥ आगमे शाश्वती बुद्धिमुक्तिस्त्री शंफली यतः। ततः सा यत्नतः कार्या, भव्येन भवभीरुणा ॥७६॥
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